आदमी की बिसात यहाँ फ़क़त इक अख़बार सी है(शेर)

1)

आदमी की बिसात यहाँ फ़क़त इक अख़बार सी है
आज ख़बर, कल रद्दी और  शक़्ल  इश्तेहार  सी है


2)
तिरे हाथ पे अपनी क़लम से प्यास लिख रहा हूँ मैं
जैसे पानी की नज़्म पे बुलबुले सा,  मिट रहा हूँ मैं


3)
ऐ ज़िन्दगी, ये क्या क्या दिखा रही है
यहाँ  छोटी सी उम्र जीना है सबको
और, तू इतना सिखा रही है ।

4)
बिन तुम्हारे ये फ़िरदौस बड़ा बुरा सा लगे
जैसे आसमाँ हो पूरा, चाँद अधूरा सा लगे 


तारीख: 19.09.2019                                    प्रशान्त बेबाऱ









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