अपने शहर में

लौट आया हूँ कुछ दिनों के लिए अपने शहर में 
देखूँ कितना बदला गया हूँ मै लोगों की नज़र में ।

रास्ते ,गलियाँ, चौराहे,बाज़ार वगैरह सब वही है 
बस आ गई है बेहद तब्दीली नये दौर के बसर मे।

अब न वो लहजा, न सलीका,न ज़ज़्बे मोहब्बत 
मिलते हैं,मुस्कुराते है पर खलीश लिये ज़िगर में ।

इस कदर काविज़ हो गई खुदगर्ज़ी इबादतों में 
आती ही नहीं दुआएँ अब तो किसी असर में ।

सीख लो चलन अजय अब तुम भी नए दौर का 
ढूंढना बेकार है ज़ाएका-ए-अमृत यूँ जहर में ।


तारीख: 18.07.2019                                    अजय प्रसाद









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