आशिक़ी मेरी दोस्तों अधूरी रही
ख्वाबों में भी उनसे मेरी दूरी रही ।
बेवफा क्यों उसे कहें हम भला
कुछ तो अपनी ही मज़बूरी रही ।
न इज़हार,न करार, न कोई तकरार
जुदाई में हमारी खुदा की मंजूरी रही ।
न सजदे में गए और न शिकवे किए
मुहब्बत में खामोशी जो ज़रुरी रही ।
कामयाबियों ने चूमे कदम उनके हैं
आदतों में जिनकी जी हुजूरी रही ।