चमक उठती है आँखे , जब दीदार-ए-यार होता है।
साँसे हो उठती है बेचैन,जब सच्चा प्यार होता है।
धडकन भी रूकती है , साँसे भी उखड़ती है
जब आँखो से इश्क का , इज़हार होता है।
कहते हम भी नही कुछ , वो भी खमोश रहते है
लफ्ज मायने नही रखते , रूह से इकरार होता है।
क्यों पूछते हो यार , मुझसे सबब बेचैनी का
मेरी रूह में दफन वो शख्स, शर्म से तार-तार होता है।
ये आँखे बेवजह तो , सुर्ख नही होती
दिल भी रोता है जब , खफा यार होता है।
सुनाई देगीं उन्हीं को, ये सिसकियाँ मेरी
जो रोज दर्द - ए - इश्क से , दो चार होता है।
माना लोग यूँ ही तो , उसे छूने से गुरेज नही करते
पर खुद भी बहुत जलता है , जो अंगार होता है।
खुद दर्द सहता है , उसे खुश देखने की खातिर
ये रोगी इश्क का , बड़ा दिलदार होता है
"राम" क्या कोई भी , शख्स बेचैन हो जाए
लव खमोश करना हो , पास जब यार होता है।