भरोसे को कमाने में ज़रा सा वक़्त लगता है

भरोसे को कमाने में ज़रा सा वक़्त लगता है
पकड़ अपनी बनाने में ज़रा सा वक़्त लगता है

बड़ा आसाँ है आँगन में खड़ी दीवार कर देना
मगर उसको गिराने में ज़रा सा वक़्त लगता है

नहीं इतना भी मुश्किल है अगर तू ठान ले दिल में
अमन के गुल खिलाने में ज़रा सा वक़्त लगता है

बहुत नाराज़ बैठी है न रोटी आज है खाई
मगर माँ को मनाने में ज़रा सा वक़्त लगता है

नया माहौल है घर भी नया है रिश्ते नाते भी
नई रस्में निभाने में ज़रा सा वक़्त लगता है

इरादें हो बड़े तो मुश्किलें सब लगती हैं छोटी
पहाड़ों को गिराने में ज़रा सा वक़्त लगता है

पवन तूफान से लड़ जाओगे बस हौसला रक्खो
नई जन्नत सजाने में ज़रा सा वक़्त लगता है
 


तारीख: 17.03.2018                                    डॉ. लवलेश दत्त









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है