मुझे जब जब चश्म-ए-आईना नजर आया।
हजारों की भीड में मैं तन्हा नजर आया।
मेरे कातिल भी मुझें यूँ कहकर छोड गये
ये इश्क का मारा हमें मुर्दा नजर आया ।
वो शख्स एक था उसके चेहरे अनेक थे
जितनी बार देखा अनजान नजर आया।
मेरी खमोशी को मेरी खता समझते रहे
हर मोड पर उन्हें में गुनाहगार नजर आया
खुशीयाँ भी मुझसे सदा दूरी बना कर चली
राह -ए -जिदंगी में मैं "बेचैन" नजर आया ।