पड़ा जबसे मैं यारों मुफलिसी में
हुनर आया है मेरी शायरी में ।
नहीं गर प्यार मुझसे ये हमनशी
रखा क्यू फूल मेरा डायरी में ।
ख़ुशी से कर लिया स्वीकार मैंने
मिला जो भी मुझे इस ज़िन्दगी में ।
रहा जिससे था अब तक दूर मैं जो
मिला वो भी खुदा की बंदगी में ।
हज़ारों गम है पाले वो जिगर में
कोई तो राज है उसकी हँसी में ।
हया आँखों में और तबस्सुम तेरा
रिशू भी है लुटा इस सादगी में ।