इश्क़ हो या जंग

 

तुमसे ज़्यादा बात को कोई दुशवार क्या करे
धड़कता है तो भी पत्थर है कोई पत्थर से प्यार क्या करे

सब रहगुज़र सब कारवें हमने गुज़ार दिए
इससे ज़्यादा कोई किसी का इंतज़ार क्या करे

तुम मिल्कियत थी मेरी खो चुकी हो
जो सब हर चुका है उस पर कोई वार क्या करे

जिन्हें कभी लौट के आना ही नहीं था वे नहीं आए
कोई भी चीख़ सदा पुकार क्या करे

अब जंग हो या इश्क़ हो हो के रहे
कोई कितने सिक्के उछाले फ़ैसले बार बार करे


तारीख: 15.06.2017                                    राहुल तिवारी









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