जितना मिला मुझसे, सारे दे दो

जितना मिला मुझसे, सारे दे दो
एक चाँद और चंद सितारे दे दो

ढाँपा था जिससे तेरे पतझड़ को
मुझे वो सब के सब बहारें दे दो

खुली छत की वो  गर्मी की रातें
एक कंबल में लिपटी जाड़े दे दो

वो धूप के लड़ियों की कतारें
मुझे काश्मीर की चनारें दे दो

जिसमें सो सकूँ एक सदी तक
जुम्बिश ख़्वाबों की मीनारें दे दो


तारीख: 23.08.2019                                    सलिल सरोज









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