जो ऊब गए ज़िंदगी से मक़तल गए इससे पहले के गिर पड़ते संभल गए
कुछ इंसा की शक्ल में भेड़िए है कुछ नक्सल बने कुछ चम्बल गए
इश्क़ आफ़ताब है दूर से देखो जो पास गए जल गए पिघल गए
और माँ के बिना आने लगी है नींदे आजकल एहसास हुआ के हम कितने बदल गए
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