कभी तो जिंदा से मिलो मुलाक़ात को

 

अकङ के गणित सेजिंदगी का सवाल नहीं सुलझता

शमसान से गुजरा करजो समझना चाहे कायनात को

 

बनना बाज तेरी मंजिल हैतो लाशें मुक्कदर भी होंगीं

चिड़िया सी उङान है नाहासिल फिर दिले जज्बात को

 

लहरों की कहासूनी में समुंदर ने मछली को फेंक मारा

पर रोया बहुत फिर सर पटक पटक के शबे बारात को

 

सोने चांदी की सुराही से चिता को फेरे नहीं चढ़ा करते

मिट्टी के घड़े नेकब कब नहीं चेताया था इस बात को

 

समझ वक़्त की तवज्जोझुकी घास तूफ़ां के दरमियां

फातिया पढा गया उन दरख्तों का अड़े जो औकात को

 

गुजर गयी हैगुजरे जा रही है और यूं ही गुजर जायेगी

मरे हुए से जिंदा होकभी तो जिंदा मिलो मुलाक़ात को


तारीख: 22.07.2019                                    उत्तम दिनोदिया









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