अकङ के गणित से, जिंदगी का सवाल नहीं सुलझता
शमसान से गुजरा कर, जो समझना चाहे कायनात को
बनना बाज तेरी मंजिल है, तो लाशें मुक्कदर भी होंगीं
चिड़िया सी उङान है नाहासिल फिर दिले जज्बात को
लहरों की कहासूनी में समुंदर ने मछली को फेंक मारा
पर रोया बहुत फिर सर पटक पटक के शबे बारात को
सोने चांदी की सुराही से चिता को फेरे नहीं चढ़ा करते
मिट्टी के घड़े ने, कब कब नहीं चेताया था इस बात को
समझ वक़्त की तवज्जो, झुकी घास तूफ़ां के दरमियां
फातिया पढा गया उन दरख्तों का अड़े जो औकात को
गुजर गयी है, गुजरे जा रही है और यूं ही गुजर जायेगी
मरे हुए से जिंदा हो, कभी तो जिंदा मिलो मुलाक़ात को