"कट जाती थी तन्हाई की वो रात फिर भी मगर !
होती तो थी अक्सर ही उनसे बात फिर भी मगर !!
उस वक्त होती थी वो जो बरसात अब क्या कहे ;
है आज भी यूँ तो वही बरसात फिर भी मगर !!
कुछ बात थी जब साथ था उनका कभी उनदिनो ;
तन्हा नहीं हूँ अपनो का है साथ फिर भी मगर !!
तुम बिन भी कट जायेगी यूँ तो मेरी ये जिन्दगी ;
माना कि सच में ये सही है बात फिर भी मगर !!
हम मिल नहीं पाये जमीं औ आसमाँ की तरह ;
मिलते तो है उसके मेरे ख्यालात फिर भी मगर !!
खुल के कभी ऐ 'देव' उनसे बात हो ना सकी ;
हर बार आये कहने के लम्हात फिर भी मगर !!