ख़राश

इतने दर्द इतने ग़म,अए दिल तू कैसे जीएगा...।
ये आँखें इतनी नम,ये समंदर कैसे पीएगा..।

ना बहार ही है,और ना बियावान का पता...।
इस शहर को सेहरा बनते,कितना वक़्त लगेगा...।

तेरी आवाज मे मुंतज़िर,ये कैसी खराश है...।
दर्द की भी ज़िद्द है,रहेगा तो लब पे रहेगा...।

सुन लो  ज़रा सा तुम,शिकवा मुझे है एक....।
तेरे बाद किसी से,अब शिकवा न रहेगा....।

मेरा दिल से खफा होना,बेसबब सी बात है....।
आखिर मेरा दिल ठहरा,मेरा ही रहेगा....

तुम खुद बता दो,तो क्यूँ न सच का गुमान हो...।
वरना झूठे ख़यालों का,चलता सिलसिला रहेगा...।


तारीख: 19.06.2017                                    मुंतज़िर









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