अब इस तरह मुझे न बचा के रख
फानूस के जैसे तो न सजा के रख
मैं खुद तलाश लूँगा अपनी मंज़िलें
बाज़ार में दाम मेरा न बता के रख
मैं नई सुबह का नया सूरज सा हूँ
मुझे दिए की तरह न बुझा के रख
हैं ज़िन्दा बे-शक अहसासात सभी
यूँ असबाब के जैसे न उठा के रख
मैं जितना ही हूँ,उतना तो जरूर हूँ
यूँही बस हिसाब से न घटा के रख