मेरी कलम, मेरा मन

इनका अद्भुत सामंजस्य रोज, मेरे भीतर का छिपा दर्द दिखाता है,
इस, पुरानी, कलम का, मेरी, मन की, छटपटाहट से, खूब नाता है!!

सारी उम्र, उस नौकरी में, मैंने, ये कलम , बिना रुके, खूब, चलाई है,
ये भी ,सच है, इसके सिवाए, हमें और कुछ, न खास आता जाता है,

पहले, बंधे बंधे थे, यह हाथ, सरकारी नौकरी में, सरकारी कानून से,
अब, ये अपना, मन, कुछ क्रांति ,करने को अक्सर ही कुलबुलाता हैं,

बालो की, सफेदी देख के, सुन ही लेता है, कोई न कोई, फ़रियाद मेरी,
वरना, आज, किसी मजबूर को, दुत्कारने में किसी का क्या जाता है ,

क्या, अपने, पुराने दोस्त, नाते-रिश्तेदार, पडोसी और ये सारा समाज ,
कि अब, उम्र, ढल गई है, मेरी, हर बार, मुझे, यह ही समझाता है,

पर ये, सच है कि, ज़िंदगी के, सारे, इन बोझिल से, लम्हों में, बस,
इस, कलम का, अपने साथ, होना ही, राज, आखिर, काम आता है ,

इनका, अद्भुत सामंजस्य, रोज, मेरे भीतर का, छिपा दर्द दिखाता है,
इस, पुरानी, कलम का, मेरी, मन की, छटपटाहट से, खूब नाता है!!


तारीख: 19.06.2017                                    राज भंडारी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है