दिल दिया तो फिर धङकने की इजाज़त तो बख्श
हम जी लेंगे इसके बगैर, ऐसा इस दिल का क्या है
आ जमीं पर, कुछ दिन ओढ कर देख मेरा लिबास
तुझे भी तो हो खबर कि आखिर तूं सिलता क्या है
है तूं मीनारे-मस्जिद, मैं सीढियों के भी नाकाबिल
देकर तिनके को ये आंधियां, यूं तूं मचलता क्या है
थोड़ा थोड़ा सा रिसता है दर्द मेरे हंसी के पैबंदों से
मेरा यार है बेखबर कि आखिर ये पिघलता क्या है
उसकी रुसवाईयों ने, मेरे सपने भी बंजर कर डाले
ना रंग है ना खुश्बू, तो हर सुबह ये खिलता क्या है
बनाया मुझे पत्थर ओ पत्थरदिल सनम से मिलाया
जब हैं दोनों ही पथरीले, तो फिर ये तरलता क्या है
परवरदिगार खत्म कर किस्सा और कर ले तसल्ली
आखिर मुझे रोज रोज मार कर तुझे मिलता क्या है