बस मुझे ही अपनी गलियों में यूँ ही न बुलाया कर 

बस मुझे ही अपनी गलियों में यूँ ही न बुलाया कर 
कभी चाँद बनके तू भी मेरी छत पे आ जाया कर 

मैं जाता ही नहीं किसी भी मंदिर और मस्जिद में 
बस तू ही मुझे मेरे ईश्वर,खुदा सा नज़र आया कर 

मैं क्यों जाऊँ किसी भी काबा या काशी को कभी 
मेरी तासीर पर जन्नत बनकर तू बिखर जाया कर 

मैं हो जाऊँ पाक-साफ़ बस तेरे एक दीदार से ही 
कभी गंगा,कभी जमुना सा मुझमें गुज़र जाया कर 

अगर तेरी सूरत के अलावे भी है कोई जीनत कहीं 
तो भरी दोपहर मुझे भी कभी ये जादू दिखाया कर 


तारीख: 07.09.2019                                    सलिल सरोज









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है