जुदाइ तेरी ये रात मेरी

जुदाइ तेरी ये रात मेरी , यूँ  ही अकेले बिता रहा हूँ ।
तुम्हीं को गीतों में गा रहा हूँ , तुम्हीं को ग़ज़लें सुना रहा हूँ ।।

बिना बताए ही रूठ जाना ,बहुत वो उनका मुझे सताना , 
खुलेगीं तेरी सितम की बातें ,वही ग़ज़ल तो सुना रहा हूँ ।।

कभी था सपना तुम्हारा चेहरा ,हंसी थी दुनिया मेरी मग़र अब,
वही जिसे के मैं जी न पाया , वही जवानी बिता रहा हूँ ।।

तमाम बातें, तमाम वादे , सभी था पर आज देखो , 
है मुझसे रूठा खुदा के जैसे ,वही कि जिसका खुदा रहा हूँ ।।

कहा न खुलकर के मैं कभी कुछ, कहा था तुमने न नाम लेना , 
तुम्हीं को गाता रहा मग़र मैं , तुम्हीं को सबसे छुपा रहा हूँ ।।

हिसाब अपना किताब अपना , कि साकी का है जवाब इतना ,
कि पूछते हो सवाल जितना ,शराब उतनी पिला रहा हूँ ।।

मेरे बिना भी न जी सकेगा , ये सोचकर रो रहा कि क्यूँ फिर,
उसीने छोड़ा है आज मुझको , कि जिसके दिल की दुआ रहा हूँ ।।


तारीख: 19.09.2017                                     देव मणि मिश्र









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