कतरा-ऐ-ख्वाब

 

 

तेरी यादों की महकतेज धूप में भीजब गुजरे करीब से

दूर कंही दूर क्षितिज परहौले सेशर्मा सी जाती है शाम

 

कभी उजङाकभी खिलादिन रैन ताकता हूँ आजकल

खामोशियांतेरी तस्वीरपानी में कंकर और लहरें तमाम

 

आगोश में समेट लेने को मुझेकी लाख साजिशें रात ने

हम भी गिनते रहे करवटेंलिख हथेली पर आपका नाम 

 

सुनासोते नहीं हैं आप भीमेरी हिचकी ही पढ लिजिये 

मैंने रोशनी के धागों से लिखा हैआपके चांद को पयाम

 

बङा चुभते रहेबङा जलते रहेदिन रात सफर के छाले

हर मरहम को नकाराकैसे छूने देता मैं मोहब्बते मुकाम

 

अजी सुनिए,  प्यास बख्श दीजिए "कतरा--ख्वाबकी

        दरिया को रुला कर,  चैन से सो नहीं पाएगा ये आसमान 

तारीख: 22.07.2019                                    उत्तम दिनोदिया









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