कुछ तो समझिए,ये मुआमला इश्क़ का है

कुछ तो समझिए,ये मुआमला इश्क़ का है
इसकी जिरह आखिरी बात तक रहती है

नहीं मिटा पाएँगे अपने छोटे होने का अहसास
आपकी हैसियत बस जात तक रहती है

जो कभी धूप जलाऊँ तेरी यादों की तो
फिर तेरी खुशबू बारहां रात तक रहती है

आप मालिक हैं, कुछ भी खा पी सकते हैं
गरीबों की भूख दाल भात तक रहती है

आप बाप बनते हैं समाज के तो समझिए
लड़की की इज़्ज़त सर से लात तक रहती है


तारीख: 23.08.2019                                    सलिल सरोज









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