क्या इस जीवन का यही होना था

क्या इस जीवन का यही होना था, 
पाने की चाह में खुद को खोना था ....!!

बिकने कैसे बाज़ार में गए हम, 
अपना सब मिट्टी, उनका सोना था ...!!

हसरतों तक हाथ न पंहुचा मेरा, 
दूर , बहुत दूर ,एक खिलौना था ...!!

मंज़िले बन गयी एक नया रास्ता,
तिलिस्म का मोह, मन भोला था.....!!


तारीख: 14.06.2017                                    रेखा राज सिंह









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