तारीफ़ के लिए तरसते फ़नकार देखा है
गुमनामी में ही गुजरते कलाकार देखा है ।
ये और बात है वो मक़बूल हो नहीं पाए
लेखनी मगर उनकी बेहद दमदार देखा है ।
कभी किसी मंच पर उन्हें सुना नहीं गया
घर में भी खफ़ा उनसे है परिवार देखा ।
चाहता हूँ मैं आवाज़ उनके लिए उठाऊँ
जिनके लिए समाज में तिरस्कार देखा है ।
जाने कब ज़माना समझेगा ये हक़ीक़त
गलतफहमियां पाले हमने हज़ार देखा है ।