बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापारी

एक जमाना था जब गाँधी जी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और भारत की जनता गाँधी जी साथ खड़ी थी. भारत के कुछ लोगों को अपनी इस बहिष्कार की गलती का अहसास हुआ कि पूरी दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है और भारत तकनीकी तौर पर पिछड़ गया है . प्राचीन वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल कर नहीं सकते थे क्योंकि उसके चोरी होने की संभावना ज्यादा होती है. इतनी पूंजी थी नहीं कि अपने दम पर किसी देश से मुकाबला कर सके. आजादी के तीन दशक बाद एक शानदार गठजोड़ किया गया उन्हीं अनुयाइयों ने नई आर्थिक नीति लागू करी और विदेशी पूंजी और वस्तुओं को मंगाना शुरू किया वो भी अयाशी वाली वस्तुएं. 

जब देश दिवाला हो गया और देश का सोना गिरवी रखना पड़ा. उसी समय डंकल अंकल पर समझौता हो गया. तब विपक्ष ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया. उसी समय धार्मिक उन्माद की भी जरूरत पड़ी. अर्थात विरोध बहिष्कार तिरस्कारी ही व्यापारी होते हैं. आज देश के दुश्मन से मोस्ट नेशन का दर्जा छीना नहीं जा सका जबकि यह सरकार के हाथ में है, सॉरी में भूल गयी कि डंकल अंकल समझौते के अनुसार हम यह दर्जा नहीं छीन सकते. मतलब जब भी बहिष्कार होगा तभी देश में सबसे ज्यादा विदेशी व्यापार होगा सबसे ज्यादा समझौते होंगे. 

भारत एक त्यौहारों वाला देश है तब ऐसे सीजन में त्यौहारी वक्तव्यों का सीजन न हो ऐसे कैसे हो सकता है? यूँ तो हमें किसी बात से गुरेज नहीं लेकिन कोई अगर हमारे दुश्मन की तरफदारी करेगा तो उसका बहिष्कार करना जरूरी है. हां बहिष्कार से व्यापार होना चाहिए चाहे वह धर्म की चासनी में ही क्यों न किया जाये . अर्थात बहिष्कार तिरस्कार एक राजनीतिक व्यापार है. 

आज विदेशी चीजों के बहिष्कार का मौसम है. यह भी बड़े मजेदार बात है कि भारत का बाजार विदेशी वस्तुओं से भरा पड़ा है. खादी पहने नेता लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रचार कर रहे हैं विदेशी तकनीकी से ताकि घर में विदेशी वस्तुएं प्रयोग हो सके और बहिष्कार में स्वदेशी का गुणगान और पर्दे के पीछे व्यापार. बहिष्कार के लिए अंग्रेज बनने और बनाने की होड़ है. क्योंकि स्वदेशी के नाम पर अब हमारे पास है ही क्या? सबकुछ तो विदेशी है, जल, जंगल ,जमीन सब कुछ तो बेच दिया है, कम से कम जो वस्तुएं बची है उनके नाम पर तो बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार बनता ही है. विदेशी वस्तुएं प्रयोग करने के लिए होती है और राजनीति के लिए बहिष्कारी. अब नेताओं को समझ में आ रहा है कि विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करते हुए ही बहिष्कार करना है. 

बहिष्कार जनता को नहीं करना है. यह काम नेताओं का है क्योंकि वे लोग तो दिलो जान से स्वदेशी हैं. देखो न सदियों से अब तक सफेदपोश ही हैं. खादी पहन कर ही सारे समझौते विदेशी कम्पनियों से हो सकते हैं. बहिष्कार करना स्वदेशी होने की निशानी है लेकिन विदेशी कम्पनियों से नित नए समझौते करना और लुभावने ऑफर देकर अपने यहाँ स्थापित करना उससे बड़ा स्वदेशीपन है. अब कम्पनी विदेशी माल स्वदेशी और स्वदेशी कम्पनी और माल विदेशी तो बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार आसानी से हो सकता है. इस तरह के बहिष्कार से ही हमारी अर्थव्यवस्था बहुत तेजी चलती. और हां! बहिष्कार भी तो उन्हीं चीजों का करना है जिससे हर गरीब जुड़ा है और उनकी रोजी रोटी जुड़ी है. अयाशी से जुडी वस्तुओं का बहिष्कार करना तो देश द्रोह है. इस बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापार ने ही नेताओं का देश प्रेम बचाया है . जनता के जिन्दा रहने या न रहने सवाल इसके सामने कुछ भी नहीं. 


तारीख: 08.06.2017                                    आरिफा एविस









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है