फेसबुक के वरिष्ठजन

जब से सोशल मिडिया का प्रादुर्भाव हुआ है मेरे दिमाग में ज्ञान का फ्री रिचार्ज हुआ कि देश की मुख्यधारा में आने के लिए सोशल मिडिया पर लिखना ज़रूरी है। मुझे अहसास कराया गया की अगर जल्द ही मैंने लिखना चालू नहीं किया तो सरकार मुझे गरीबी रेखा के नीचे बंदी बना सकती है। मुझे डर सताने लगा कही अगर मैं लिखकर अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाया तो कही सरकार मेरा पेन कार्ड, आधार कार्ड से लिंक करने से मना ना कर दे। बड़े ही भारी मन से मैंने लिखना चालू किया। तन तो पहले से ही भारी था। मन और तन दोनों भारी होने से आपके लिखे शब्दों में वजन आता है। 
 
किसी भी काम की शुरुवात में उस क्षेत्र के अनुभवी वरिष्ठजनो से मार्गदर्शन और आशीर्वाद लेना चाहिए। इसी आशा में मैं भी लेखन के कुछ वरीष्ठजनो के हत्थे चढ़ गया। ताबड़तोड़ छापे मारने की गति से मैंने फेसबुक पर सभी  वरिष्ठ लेखको की प्रोफाइल पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज  दी ताकि उनसे जुड़कर मुझे लेखन के गुर सीखने मिले। लेकिन मेरे विचार का अचार बन गया क्योंकि गुर के बदले मुझे गुरुर मिला। कई वरिष्ठ लेखको ने इनबॉक्स में माथा टेकने के बाद आजीवन अहसान मानने की शर्त रखते हुए ही मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की। कई वरिष्ठों ने तो इनबॉक्स में सजदा-सेरेमनी होने के बाद भी  फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने में एक प्रकाश वर्ष का समय तय कर लिया।

अपनी मित्रता सूची में  सभी वरिष्ठों को प्रसन्न करने के लिए मैंने कठोर तपस्या की । रोज़ सुबह उठते ही उनकी सभी पोस्ट्स पर लाइक-कमेंट्स का भोग लगाता था परंतु गरिष्ठ भोग लगाने पर भी कभी वरिष्ठ प्रसन्न नहीं हुए। उनकी हर पोस्ट पर हाज़िरी लगाने के बावजूद भी वो कभी मेरी पोस्ट पर अवतरित नहीं हुए। मेरी किसी पोस्ट को उन्होंने कभी लाइक नहीं किया ना ही अख़बार में छपे मेरे किसी लेख पर उन्होंने मुझे बधाई दी। मैं उनके लेखन की सुवास लेने के लिए उनका फेसबुक मित्र बना था लेकिन उनके इस व्यवहार से मुझे छुआछूत की बू आने लगी। पहले वरिष्ठो को मिलने पर  मैं कहता था, "आशीर्वाद बना रहे।" लेकिन फेसबुक के वरिष्ठो की चपेट में आने पर वरिष्ठो के लिए मेरे मन से निकलने लगा , "कुंठा बनी रहे"। वरिष्ठो के इस स्वभाव से मैं दुखी रहने लगा था लेकिन बाद में कुछ मित्र जैसे दिखने वाले लोगो ने इनबॉक्स में बॉक्स भरकर सांत्वना देकर समझाया की ये वरिष्ठो के प्यार जताने का तरीका है, वो तुम्हारा हित चाहते है इसलिए तुम्हारी पोस्ट लाइक नहीं करते या तुम्हे बधाई नहीं देते ताकि तुम्हारे मन में कही गर्व या अभिमान ना आ जाए। ये सुनकर मेरे मन का रहा सहा अभिमान भी वरिष्ठ महोदय की विनम्रता की तरह गायब हो गया।

कभी कभी जब वरिष्ठ मूड में होते है तो नए लेखको और उनके लेखन को लानत ज़रूर भेजते है जो उनके कारिंदो द्वारा हम तक प्रसाद रूप में पहुँचा दी जाती है जिसे पाकर हम जैसे नए लेखक अनुग्रहित हो जाते है। वरिष्ठो की लानत टॉनिक का काम करती है क्योंकि कनिष्ठो को लानत भेज भेज कर ही आजकल के वरिष्ठ "वरिष्ठ-गति" को प्राप्त हुए है।

फेसबुक के वरिष्ठजन लेखन के साथ साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपना पूरा योग"दान" देते है। नारी सशक्तिकरण जैसे मुद्दे उनकी हिटलिस्ट में है। अपनी मित्रता सूची में विद्यमान हर अबला नारी को प्रात: दोपहर, संध्या और रात्रि  का नमस्कार करना उन्होंने अपनी दिनचर्या में शामिल कर रखा है। अपनी महिला मित्र की पोस्ट पर तारीफों के वो इतने पुल बाँध देते है की PWD विभाग भी उनसे जलन रखने लगे। 

नारी सशक्तिकरण के अलावा अपने आत्म वैभव को जगाना भी वरिष्ठ महोदय के एजेंडे में प्रमुखता से शामिल है। दूसरो को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की सूचना को भी भले ही वो इग्नोर कर देते हो लेकिन अगर उनका दूधवाला भी उनकी तारीफ कर दे तो उसके कहे हुए शब्दों को उधृत  करते अपनी फेसबुक वाल पर उसका धन्यवाद करना नहीं भूलते है। वरिष्ठ जी का मानना है की अगर हर व्यक्ति अपने आत्म वैभव में जाग जाए तो दुनिया स्वर्ग बन जाएगी। 

ऐसे वरिष्ठजनो को पाकर मैं धन्य महसूस करता हूँ। फेसबुक के वरिष्ठजन संदेश देते है की जीवन में उम्र और अनुभव से वरिष्ठ होना पर्याप्त नहीं है। वरिष्ठ होने पर बालो की तरह वरिष्ठता भी पक कर नीचे झड़नी चाहिए तभी समाज वरिष्ठता के फल पाकर और खाकर संतुष्टी का अनुभव कर सकता है।


तारीख: 07.07.2017                                    अमित शर्मा 









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