जियो खुल के माल पियो


मामा जी! बोलो भांजे! क्या हाल है?


मामा जी! हाल बेहाल है, दिल कंगाल है, बिल माला मॉल है, आपके रहते बाकी सब हलाल है.करना सबको कंगाल है. ये सब आपकी सरकार का कमाल है.


भांजे! जब सबसे दुश्मनी करके तुमको तन मन सब कुछ दे ही दिया है, तो थोड़ा पार्टी-वार्टी के लिए भी फंड दिया करो. सरकार कैसे चलेगी?


मामा जी! चुनाव में आपको ही नहीं विपक्ष को भी खूब खिलाया पिलाया. पैसों से खूब नहलाया, चुनाव आने तक तो इन्तजार करो. पिछला जो दिया उसे तो पूरा करने दो. हम कोई धर्मशाला नहीं चलते कि ‘जियो’ और जीने दो, हमारा एक ही वाक्य है खुद ही 'जियो' और खुद ही सारा माल पियो. बात न बने तो विदेश में जी भर कर ‘जियो’.


भांजे! ऐसा नहीं लगता कि आप बहुत-सी छोटी सी कीमत पर बहुत ज्यादा वसूल रहे हो. फिर तुमने तो भविष्य के सरे इंतजाम कर लिए है. हमारी  सरकार रहे न रहे तुम रहोगे , यहां नहीं तो कही और कुछ तो राजनीति की नैतिकता का ख्याल करो.


मामा जी! व्यापार की एक ही नैतिकता होती है- लाभ, लाभ और लाभ.  आपको क्या लगता है, हम जनता को  फ्री में ‘जियो’ शिखा रहे है. जमीन फ्री की. बैंक से पैसा फ्री का, न चुकाओ तो कर्ज सरकार का . जल जंगल जमीन सब हमारी है. आपकी बस सरकार है वो भी हमारे चंदे से चलने वाली.


ये जान लो मामाजी! अब ‘जियो’ के मामा की सरकार है. अब हम किसी को भी हड़का सकते है. जब थानेदार अपना हो तो डर काहेका.  और फिर जब मामाजी ने अपना हाथ भांजे पर रख ही दिया है तो आराम से कम से कम पांच साल तक तो वारे-नारे करने दीजिए. जब सरकार चली जाएगी  तो  विदेश तो है ही सेटल होने के लिए. हमारे सभी भाई बंधु है वहां पर और आज वैसे भी दुनिया एक ग्लोबल गाँव ही तो है.


मामाजी! आज मोनोपोली का जमाना है, चाहे राजनीति में हो या अर्थनीति में. इसी लिए स्पेक्ट्रम नीलामी में सारी कंपनियों ने जितना पैसा जमा कराया है उससे ज्यादा ‘जियो’ ने दिया है आपकी सरकार को. बाजार में अपनी मजबूत स्थिति के लिए 'गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार' तो करना ही पड़ता है. जैसे आप  समय समय पर सरकार की उपस्थिति को दिखाने के लिए गैर संसदीय भाषा का प्रयोग करते है.


भांजे! तुम अन्य व्यापारियों के साथ भी तो ज़बानी जंग कर रहे हो. इससे तो तुम्हारा नुकसान होगा


मामा जी ! आप भी तो अपने विपक्षी लोगों से ज़बानी जंग लड़ते हो, उससे क्या फायदा होता है आपका और आपकी सरकार का.


भांजे! हमारी तो मजबूरी है, जब हम अपने किये वादे नहीं निभाते तो हमें किसी छद्म मुद्दे को उठाना पड़ता है, पचास-सो लोगों की जान भी लेनी पड़ती है. ये सब सरकार के नुख्से है जो हर सरकार अपनाती है.


मामाजी ! जब व्यापारी लोग जबानी जंग लड़ते है तो उनका भी एक ही मकसद होता है अपने मुनाफे को बचने के लिए जनता को किसी अन्य मुद्दे पर लाना ताकि मुनाफे पर किसी की नजर भी न पड़े.


तो भांजे जाओ जी भर के ‘जियो’ खुल के माल पियो. जब तक मामा की सरकार है तुम पर आंच नहीं आ सकती चाहे किसी भी मंत्रालय को कुर्बान करना पड़े. आखिर देश के विकास का सवाल है. जय हो मामाजी की, जय हो मामा सरकार की.


तारीख: 18.06.2017                                    एम.एम.चन्द्रा









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