विधायक-कोष का हिसाब

खबर है कि सरकार बनने के लगभग दो साल बाद भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 50 % से अधिक विधायको ने अपने "विधायक-कोष" में से एक भी पैसा अपने क्षेत्र के विकास के लिए ख़र्च नहीं किया है। इसके पीछे के असली कारणों का तो अभी पता नहीं चला है लेकिन जानकर लोगो के मुताबिक ज़्यादातर विधायको ने शायद इसलिए अपना कोष खर्च नहीं किया है क्योंकि उनको लगता है कि कोष भी उनकी तरह खुद ही बैठे बैठे खर्च हो जायेगा। सबसे बड़े अचरज की बात है की अब तक आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने इसके लिए मोदी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया है और खुद वो और उनकी पार्टी तो "ज़िम्मेदारी-प्रूफ" है । इसका मतलब है कि वो इसके लिए केवल और केवल "कोष" को ही "दोष" देंगे है।

आम आदमी पार्टी (आप) की स्थापना राजनीती को बदलने के उद्देश्य से अरविन्द केजरीवाल द्वारा की गई थी लेकिन दिल्ली में आप की सरकार बनने के बाद से उनकी बॉडी के "कारपेट- एरिया" और "बिल्टअप - एरिया" के अलावा कुछ भी नहीं बदला है। दिल्ली की जनता ने आप विधायको को जितवा कर उनका राजनैतिक करियर बनाने की शुरुवात तो कर दी थी लेकिन जीतकर आने के बाद दिल्ली की जनता का विश्वास बनाने रखने के बजाय आप विधायको ने "राशन कार्ड" बनाना ज़रूरी ज़रूरी समझा। विरोधी चाहे कुछ भी कहे लेकिन राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया को इतना सरल बनाने के लिए आम आदमी पार्टी का नाम राशन कार्ड के साथ साथ भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में भी सुनहरे अक्षरो से ज़रूर दर्ज होगा। 

जहाँ विधायक राशन कार्ड बनाने में व्यस्त है तो विधायको के नेता केजरीवाल अपना "अनलिमिटेड वैलिडिटी वाला विक्टिम कार्ड" हर समय और हर जगह "फ्लेश" कर दिल्ली की जनता की अपेक्षाओं और अरमानो पर "फ्लश" चला देते है। इनकी हरकतों को देखकर लगता है कि मोदी जी को "डीमोनेटाईजेशन" से पहले देश में "डीमोरोनाईज़ेशन" करना चाहिए था। आप के अंदरूनी सूत्रों की माने तो इन विधायको का केजरीवाल जी के प्रति इतना प्रेम है कि शायद उन्होंने विधायक कोष का पैसा ,केजरीवाल जी की खांसी के इलाज़ , मफलर और विपश्यना के लिए बचा रखा है। लेकिन इन विधायको को अब तक समझ जाना चाहिए था कि केजरीवाल जी की खांसी उनकी बीमारी नहीं है बल्कि उनका आभूषण है , जो की (प्रशांत) भूषण के पार्टी छोड़ने के बाद किसी भी क्षण उनके काम आ सकता है।

स्मार्ट फ़ोन यूज़ करने वाले कई "अनस्मार्ट" लोगो का मानना है की आप के ज़्यादातर विधायक इसलिए अपना विधायक कोष खर्च नहीं कर पाए क्योंकि "गूगल प्ले स्टोर" में से "पे-टीम" डाउनलोड करने के लिए उन्हें ढूंढने के बाद भी पूरी दिल्ली में कहीं भी "फ्री वाई -फाई" नहीं मिल पाया।

केजरीवाल जी अक्सर अपनी औकात से बाहर आकर , हर संस्था को दिल्ली सरकार के अंदर लाने का आग्रह करते रहते है , इसलिए हो सकता है की केजरीवाल जी के विधायको ने भी सोचा हो की जब तक आरबीआई दिल्ली सरकार के अंदर नहीं आ जाती वो विधायक कोष के लिए आरबीआई द्वारा छापे गए नोटों का उपयोग नहीं करेंगे।

सोशल मीडिया पर चल रहे ताज़ा ट्रेंड की माने तो आप विधायको ने इसलिए भी अपने कोष से कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं करवाया क्योंकि मार्केट में सारे नोट्स पर "सोनम गुप्ता बेवफा है "लिखा है जबकि केजरीवाल जी चाहते थे किसी भी परियोजना की शुरुवात "मोदी बेवफा है" लिखे नोट्स से होनी चाहिए।

सरकार बनने के बाद से आप विधायको पर अलग अलग अपराधों में इतने आरोप लगे है और इतने विधायक तिहाड़ जेल की हवा खा चुके है की, लगता है विधायक कोष का पैसा अपने विधानसभा क्षेत्र में खर्च करने के बजाय विधायको ने ये पैसे अपना केस लड़ने के लिए और वकील की फीस के लिए बचा रखे है। 

ये कयास भी लगाए जा रहे है कि चूँकि दिल्ली पुलिस आये दिन आप विधायको को हिरासत में लेकर उन्हें तिहाड़ जेल में डाल देती है इसलिए विधायको ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने क्षेत्र का विकास नहीं किया ताकि उस पैसे से तिहाड़ जेल का विकास किया सके क्योंकि आगे पीछे उन्हें सेटल तो वहीँ होना है। 

वैसे भी पैसा -वैसा खर्च करने से तो थोड़े विकास होता है। विकास तो केवल मोदी पर आरोप लगा देने से और ज़िम्मेदारी से भागने मात्र से हो जाता है, इसलिए पैसा खर्च करना ही है तो अखबारों और न्यूज़चैन्नल्स पर भारी भरकम विज्ञापनों पर करो , 12000 की प्लेट खाने में करो , "क्रांतिकारी- पत्रकारों" को सेट करने में करो , "कुंठित-लालो" को भर्ती करने में करो और इतना पैसा बचा कर रखो की अपने बीवी बच्चो को स्विटर्जलैंड घूमने भेज सको और खुद हर फ्राइडे को फर्स्ट डे -फर्स्ट शो देख सको और लौटने के बाद सड़क पर खड़े होकर पानी पूरी/पान खा सको और रात को रेलवे स्टेशन पर सोने के लिए एक अदद तकिया खरीद सको। 


तारीख: 08.06.2017                                    अमित शर्मा 









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