"अगला स्टेशन राजीव चौक है। कृपया ब्लू लाइन वाले यात्री यहाँ उतरे।"
हमेशा की तरह गुडगाँव से आते समय मेट्रो में मैं हर रोज़ सुनता हूँ। मेट्रो वाले
ऐसे एलान करते हैं जैसे की लाइन बदल लेने से आपकी जिंदगी बदल
जायेगी। फिर भी पता नहीं लोग राजीव चौक पर उतरते ही ऐसे भागते हैं कि
सही में कुछ मिल रहा है। हमेशा की तरह मैं मंद गति से ऊपर वाले प्लेटफार्म
पर आया और नॉएडा जाने वाली मेट्रो का इंतज़ार करने लगा।
मेट्रो आई पर पता नहीं आज उसमे ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। बैठने की कौन
कहे, शाम के वक़्त आपके खड़े होने की भी जगह मिल जाए तो समझ लो
की जिंदगी मेहरबान है आप पर आज। तीसरे और चौथे बोगी के बीच वाले
जगह पर मैं जा कर खड़ा हो गया। मेट्रो खुली भी नहीं थी की पीछे से किसी
ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। शाम के वक़्त मेट्रो में कोई एक थप्पड़ भी लगा दे
फिर भी आप कुछ नहीं कर सकते हैं। कारण की भीड़ होने की वजह से आप
अपना हाथ ही नहीं निकल पाएंगे। सभ्य समाज के नागरिक की तरह मैंने
भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि कंधे पर हाथ किसने रखा। पर उसके बाद
किसी ने मेरा नाम पुकारा , ऐसा लगा की आकाशवाणी हुई है । उस आवाज
को कोई कैसे भूल सकता है जब कभी सुबह सबसे पहले वही आवाज आपको
सुनाई पड़ती हो और सोते समय भी वही आवाज आपको सुलाती हो। हलाकि
पिछले 3 साले में मैंने वो आवाज कभी न सुनी थी फिर भी 15 साल
से आगे 3 साल की क्या औकात।
मैंने उसको देखा अब वो चश्मा पहनने लगी थी पर आँखों का रंग अभी भी वही
था, बाल उतने ही घने पर पहले से थोड़े छोटे, नाक के दायीं तरह का तिल
थोड़ा गहरा हो गया था, पर होंठ वैसे ही सुर्ख लाल। उस आवाज को कोई कैसे
भूल सकता है जब मोबाइल पर उसका कॉल आता था तो भले नोकिया ट्यून
बजता था पर लगता था कि वही बुला रही है। जब भी मेसेज का बीप बजता
था तो लगता था की वो कान में कुछ कह के चली गयी है । आज जब उसने
पीछे से मुझे आवाज दी तो पल भर के लिए लगा की वो 3 साल तो मेरी
जिंदगी के थे ही नहीं।
ये वही राजीव चौक मेट्रो स्टेशन था जब हम आखिरी बार मिले थे। हालाकिं
उसने उस दिन ये नहीं कहा था कि ये हमारी आखरी मुलाकात है। 84 करोड़
देवी देवता और अपने गाँव के ब्रहम स्थान की कसम की जब भी मैं राजीव
चौक मेट्रो स्टेशन से गुजरता था तो एक बार मन में ये जरूर आता था की
कही आज मिल जाए। पर दुनिया में चमत्कार कभी नहीं होते, खास कर जब
आप चाह रहे हों । हमने एक दूसरे को देखा और मुस्कुराए। तुम कैसे हो और
तुम कैसी की जैसे सवाल पूछ कर औपचारिकता पूरा किया। फॉर्मेलिटी शब्द
से ही उससे नफरत थी। एक बार मैं दो दिन के लिए बाहर गया था पर उसको
बता कर नहीं गया था,आने के साथ सबसे पहले उससे मिलने गया था और
मुझे देखते जोर का एक घूसा मेरे पेट पे मारा और लिपट कर रोने लगी कि
बता कर क्यूँ नहीं गए थे।
उस दिन का मिलना और आज 3 साल के बाद मिलना ,पता नहीं जिंदगी
क्या सिखाना चाहती है आपको। वैसे जिस चमत्कार की उम्मीद मैं आज तक
लगा कर बैठा था वो ऐसे होगा , अंदाजा नहीं था मुझको जरा सा भी।
"तुम कहाँ रहते हो" उसने ये मुझे पुछा और मैं अंदर तक हिल गया। कभी
ये हाल था कि वो मेरी जी.पी.एस(GPS)सिस्टम थी, मैं क्या खता हूँ, क्या
पहनता हूँ ,कब सोता हूँ, कब जगता हूँ,कब साँस लेता हूँ, कब गुस्सा होता
हूँ,पल पल की खबर होती थी उसके पास। पर आज उसको ये भी नहीं पता
की मैं कहाँ रहता हूँ फिर मेरे हालत कैसे होंगे ये तो जरूर उसको पता नहीं
होगा।
"मैं अक्षरधाम के पास रहता हूँ" मैंने जवाब दिया! "अरे मैं भी नॉएडा में
ही तो रहती हूँ ज्यादा दूर नहीं है तुमसे"। उसको कौन समझाता कि भले
दूरी कुछ भी ना हो पर नदी के दो किनारे कहा मिल पाते हैं कभी। कभी
तो ऐसा था की बातों का सिलसिला 2 दिन और 2 रात तक बिना रुके
चलता था पर आज 3 मिनट से ज्यादा ना वो कुछ बोल पायी ना ही मैं
कुछ। शायद उसके मन में भी वही सब पुरानी बातें चल रही थी, जो कुछ
मेरे मन में चल रहा था। पर बोल कोई नहीं पा रहा था। कौन कैसे जुदा
हुआ, किसने किसको बिना बताये जिंदगी के सबसे बड़े फैसले ले लिए,
आज हम दोनों में से कोई भी एक दुसरे से ये सब नहीं पूछना चाहता था।
अचानक उसका ध्यान मेरी कलाई पर गया और पूछ बैठी कि की घडी कहाँ
है तुम्हारी, आज भी बिना घडी के ही चलते हो, फिर तो आज भी लेट ही
पहुँचते होगे कहीं भी। मेरे लेट आने की वजह से वो एक दिन परेशान हो
गयी थी और बोली कि "आनंद तुम घडी खरीद लो मेरी तरफ से और जब
हमारी शादी हो जायेगी तब मैं तुसे ही पैसे लेकर तुम्हारा उधार चूका दूंगी"।
मैं भी टाइटन की एक सुंदर सी घडी लेकर आया। उसका बिल आज भी मेरे
पास है पर लगता है कि ये क़र्ज़ उसको अगले जनम तक ले कर जाना होगा।
सिर्फ घडी कलाई पर बांध लेने से समय पकड़ में थोड़े ना आता है। आज
उस घडी को ख़रीदे पूरे 10 साल 7 महीने और 6 दिन हो गए हैं पर कहाँ
है वो समय अब मेरे पास?
कभी उसकी एक झलक पाने के लिए इसी राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर मैं
पागलों की तरह सुबह से लेकर रात तक वही रहता था, कही वही तो फ़ोन
नही कर रही थी ऐसा सोच कर हर एक मिस कॉल को फ़ोन लगाता था,
पर चमत्कार तो होना नहीं था तो कहा से होता। यही सब मेरे मन में चल
रहा था और उसको देखे जा जा रहा था। मन जब भी आपका गंगा की तरह
निर्मल हो जाता है तो आँखों से गंगा निकलने लगती है पर मैंने उसको ये
एहसास नहीं होने दिया।
तभी मेरा स्टेशन आ गया। 15 मिनट का सफ़र और सदियों जैसा एहसास।
मैं बिना कुछ कहे उतर गया और पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा। पर मुझे लगा
की वो मुझे देखे जा रही है। मन में ये ख्याल आ रहा था कि हमने तो 7
जन्मों का वादा किया था अभी तो 1 जन्म ही हुए हैं। इस बार भी वो नहीं
बोली कि ये आखिरी मुलाकात है शायद मैंने उसको कुछ कहने का मौका ही
नहीं दिया , सीधा सीढ़ी से निचे उतर गया और अगले 2 घंटे वही इंतज़ार
करता रहा कि शायद वो मेरे पीछे पीछे आ रही हो, पर चमत्कार तभी भी
नहीं हुआ था और चमत्कार आज भी नहीं हुआ।
दुनिया गोल है और जिंदगी बहुत लम्बी है!!