कलयुगी औलाद

आज अखबार पढ़ते- पढ़ते समय एक खबर में अपने मार्निंग वाक टीम के वरिष्ठ सदस्य श्री श्रीवास्तव जी का नाम पढ़कर पूरी खबर पढ़ने की जिज्ञासा हुई, सो पढ़ता ही चला गया। एक-दो बार नहीं, मैने उस खबर को चार-पाँच बार पढ़ा। इतने पर भी मन नहीं भरा तो अपनी पत्नी को पढ़कर समाचार सुनाया। समाचार यह था कि अलीगंज में रहने वाले श्री श्रीवास्तव जी गत वर्ष ही कृषि विभाग से रिटायर हुए थे। रिटायरमेन्ट के समय श्री श्रीवास्तव जी को लगभग पच्चीस लाख रूपये विभिन्न मदों से विभाग द्वारा मिले थे, सो उनमें से पाँच लाख रूपया अपने बेटी सुमिता को और पाँच लाख रूपया अपने बेटे श्रवण कुमार को और पांच लाख रूपया अपनी बहू सीता को देकर शेष दस लाख रूपये अपने सुख-दुख, दवाई, बढ़ापे आदि के लिए बैंक में जमा कर दिये।

 

उन रूपयों पर उनके श्रवण बेटे और बहू सीता की निगाहें ऐसी तेज लगी कि येन-केन प्रकारेण उन रूपयों को हड़पना ही उनका उद्देश्य बन गया। एक दिन ईश्वर ने उन्हें सुअवसर दिया। श्रीवास्तव जी बीमार हुए, डाक्टर की फीस, दवाई, जांच के नाम पर श्रीवास्तव जी से अथारिटी लेटर पर हस्ताक्षर करवा लिये गये। फिर क्या था, दस लाख रूपये दस दिन में बैंक से निकाल लिए गये। श्रीवास्तव जी स्वस्थ हुए तो बैंक जाने पर पता चला कि बैंक में तो मात्र सात हजार रूपये हैं, शेष रकम उनके पुत्र श्रवण कुमार द्वारा निकाली गई है। श्रीवास्तव जी से यह धोखा सहन नहीं हुआ। उन्होंने धोखा, गबन, चार सौ बीसी की रिपोर्ट अपने पुत्र श्रवण कुमार व बहू सीता के खिलाफ लिखा दी थी और वह दोनों जेल में हैं।


खबर पढ़कर सहसा विश्वास नही नहीं हुआ कि बेटा श्रवण कुमार ऐसा क्यों करेगा। यदि उसने यह अपराध किया भी है तो फिर श्रीवास्तव जी ने बहू-बेटे को जेल भिजवाकर यह महाअपराध क्यों किया है? श्रीवास्तव जी तो बड़े नरम दिल थे। वह तो अपने बहू-बेटे की बड़ी तारीफ करते थे। इसी उधेड़बुन में लगा था कि रामू काका ने आकर बताया कि साहब जो आपके साथ श्रीवास्तव जी टहलने जाते थे, आपसे मिलने के लिए आये हैं। ड्राइंगरूम में बैठाओ और दो प्याले चाय लाओ, कहकर मैं ड्राइंगरूम की ओर लपका ही था कि श्रीवास्तव जी मुझसे लिपट-लिपट कर ऐसे रोने लगे जैसे मैं बचपन में अपनी माँ से लिपट कर रो-रोकर अपनी भाभी की शिकायत करता था। मैने ढांढस बंधाते हुए श्रीवास्तव जी को सोफे पर बैठाते हुए पूछा कि श्रीवास्तव जी आपके बेटे ने जो गलती की तो की किन्तु आपने जेल भिजवा कर महागलती क्यों की? मेरे इस यक्ष प्रश्न पर फफकते हुए श्रीवास्तव जी ने जो अपनी जुबानी सुनाया, उसे सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।


श्रीवास्तव जी ने बताया कि पहले तो मेरे बहू बेटे ने मेरी पासबुक व चेकबुक गायब कर दिये, फिर दूसरी चेकबुक व पासबुक लाने के नाम पर एकाउन्ट से लेनदेन करने के अथारिटी लेटर पर धोखे से बीमारी की हालत में हस्ताक्षर करवा लिये। बस फिर उसी दिन के बाद मेरी दवाई बंद, घर में डाक्टर का आना बंद, फल की बात तो छोड़िये शर्मा जी दाल रोटी के लिए भी झिड़कियां मिलने लगी। तब भी मैने धैर्य नहीं खोया। मैं किसी तरह बैंक गया इस आशय से कि कुछ रूपये निकालूँगा, जांच आदि करवाऊँगा, दवाई खरीदूँगा। सो पता चला कि बैंक में तो रूपये ही नहीं है। इसकी शिकायत जब मैंने अपने बेटे श्रवण से की तो बहू बेटे ने मेरी पिटाई कर दी। श्रीवास्तव जी ने सुबकते हुए अपनी सभी चोटें दिखाते हुए बोले, शर्मा जी यह चोटें मेरे शरीर पर नहीं, मेरे दिल पर लगी हैं और आप कह रहे हैं कि मैने महागलती की है? आपका बेटा अनुज और आपकी बहू सीटू भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करते तब आपको पता चलता कि महागलती मैंने की है या मेरे कलयुगी पुत्र श्रवण कुमार और बहू सीता ने की है।


अरे उस श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की सेवा में ही अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे और उस सीता ने अपने ससुर श्री दशरथ जी के मूक आदेश के पालन में सम्पूर्ण राजपाट धन दौलत को त्यागकर 14 वर्ष वन में बिताये थे। और यह कलयुगी श्रवण, सीता अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा जरा सी दौलत को भी लूट लिए और मेरी कैसी सेवा करते हैं देखा आपने! इतने पर भी आप मुझे ही दोषी ठहरा रहे हैं। श्रीवास्तव जी की दुख भरी कहानी सुनते सुनते मुझे अपनी दादी माँ द्वारा सुनाई गई श्रवण कुमार की कहानी मेरे कानों में सुनाई देने लगी कि किस प्रकार श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की अकूत सेवा की और किस प्रकार वह अपने माता-पिता को कंधे पर बिठाकर चारों धाम की यात्रा कराते-कराते उनको पानी पिलाने हेतु दुर्घटना में उसने प्राण त्याग दिये। और किस प्रकार फिर राजा दशरथ पानी लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गये और किस प्रकार राजा दशरथ द्वारा लाये पानी को अस्वीकार कर श्रवण के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप देकर अपने प्राण त्याग दिये।


एक पिता-पुत्र वह थे और एक पिता-पुत्र यह हैं। फिर दादी माँ की दूसरी कहानी मेरे कानों को सुनाई देने लगी कि बेटा तू श्रवण कुमार ही बनना, तेरा नाम भले ही पंडित जी ने ‘हरि ओम’ रखा हो, मगर तू श्रवण कुमार ही बनकर दिखाना। माँ से बड़ी देवी इस संसार में कोई नहीं और पिता से बढ़कर देवता इस दुनिया में कोई और नहीं है। तुझे किसी मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा में जाने की जरूरत नहीं है और न नही तुझे कहीं चारों धामों की यात्रा पर जाना है, बस अपने माता-पिता की श्रद्धाभाव से भरपूर सेवा करना, इसी में चारों धामों का पुण्य तुझे घर बैठे ही मिल जायेगा। हाँ बेटा, तू एक बात और कान खोलकर सुन ले, जब तू अपने माता-पिता की सेवा करेगा तो तेरे बहू-बेटे तेरी सेवा करेंगे। जैसा बोओगे, वैसा ही तो काटोगे, ‘बोए पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय, तो आम कहां से खाय गुनगुनाते हुए दादी माँ अन्तध्र्यान हो गई। मेरी तंद्रा टूटी तो देखा श्रीवास्तव जी रह-रहकर रोये जा रहे थ्ेा। उनकी मनोदशा देखकर मेरे मन में यह विचार बार-बार कौंध रहा था कि कहीं श्रीवास्तव जी ने भी तो बबूल के पेड़ बोए हैं और लालसा आम की कर रहे हों।


श्रीवास्तव जी को अति दुखी देखकर मैं उनके बहू-बेटे को समझाने हेतु उनके घर गया तो माजरा समझ में आया। श्रीवास्तव जी का बेटा चीख-चीखकर अपनी बड़ी बहन सविता से कह रहा था - बाबू जी ने कौन अपने माता-पिता की सेवा की थी। बेचारे दादा दादी एक एक रोटी के लिए गांव में तरसते रहे, एक जोड़े कुर्ता-पायजामा के लिए तड़पते रहे। बाबू जी ने तो अपनी नौकरी में रिश्वत के लिए दादा जी की विरासत में मिली ढाई बीघा जमीन भी बिकवा दी थी, उसके बाद कभी गांव की तरफ लौटकर देखा तक नहीं। जब भी दादा-दादी यहां आते तो टूर के नाम पर चले जाते या फिर किराया-भाड़ा के नाम पर सौ पचास रूपया देकर टरका देते। अपना पुराना कुर्ता-पायजामा भी अहसान के साथ देते। इतनी बात मेरे कानों में आते ही मेरे कानों में दादी मां की आवाज गंूजने लगी - ‘जो जस करहिं सो तस फल चाखा, को करि तर्क बढ़ावहि शाखा’। दादी मां की यह आवाज सुनते ही मेरी आँखों से स्वतः ही आँसू बहने लगे। तभी तपाक से पूज्य पिताजी ने मेरे गाल पर चांटा रसीद करते हुए कहा, तू क्यों रो रहा है बुद्ध कहीं के! तेरे बहू-बेटे अनुज और सीटू तो तेरी खूब सेवा कर रहे हैं। इतने पर भी तू रो रहा है। मैने आँसू पोंछते हुए पूज्य पिताजी को प्रणाम करते हुए कहा कि पिताजी यह तो आपके आशीर्वाद का फल है, इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं? नहीं नहीं बेटे, यह तेरे ही कर्मों का फल है। ईश्वर तो ब्याज लगाकर लौटाते हैं जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान, यह है गीता का ज्ञान, यही है सभी धर्मो का ज्ञान.. सभी धमों का ज्ञान गुनगुनाते हुए पूज्य पिताजी का चेहरा अन्र्तध्यान हो गया।


तन्द्रा टूटी तो सामने श्रीवास्तव जी के बहू-बेटे अपराधी भाव से खड़े होकर क्षमायाचना कर रहे थे। हमें माफ कर दें अंकल जी, दरअसल मेरी बिजनेस ढंगे से नहीं चल रही है, बिटिया गायत्री का मेडिकल में एडमीशन हो गया है, डोनेशन देना था और बाबू जी ने रूपया देने से मना कर दिया था। इसी लालच में यह पाप हो गया है अंकल जी! मैने श्रीवास्तव जी के बेटे श्रवण कुमार के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, बेटा यह गलती तेरे लिए महागलती हो सकती है। तू श्रीवास्तव जी के लिए न सही तो अपनी औलाद से अपनी सेवा की लालसा में श्रीवास्तव जी की सेवा कर! यह जो 9 वर्षीय पुत्र तेरे कर्मों को देख रहा है, यही तुझे तेरे कर्मों का फल देगा - जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल तुम्हें मिलेगा। इतना सुनते ही श्रीवास्तव जी का 9 वर्षीय पोता अपने दादा जी से लिपट लिपट कर ऐसे रोने लगा कि मानों वह अपने माता-पिता के गुनाहों की माफी मांग रहा हो। इस दृश्य को देखकर मेरी आंखे भी गीली हो गई, मगर यह दुख के नहीं खुशी के आँसू थे। तभी मेरे मुंह से अनयास निकल गया मूल से अधिक ब्याज प्रिय होती है श्रीवास्तव जी! इतना सुनते ही श्रीवास्तव जी ने अपने पोते को ऐसे गले लगाया मानों वह सब दुख-दर्द भूल गये हों और कह रहे हों कि मेरे प्यारे पोते, तू ऐसी गलती मत करना जो मैने और तेरे पिता ने गलती की है। प्यारे बेटे! हम दोनों को माफ कर दे मेरे प्यारे पोते, यह कहते कहते श्रीवास्तव जी अपने पोते से लिपट-लिपट कर ऐसे रोने लगे मानों वह स्वयं पोते हों और उनका पोता उनका दादा हो।


तारीख: 18.07.2017                                    पंडित हरि ओम शर्मा हरि 









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