मोहल्ले की महफ़िल

भगवान भास्कर आज अपने फुल प्रभाव से चमक रहे है.... फरवरी महीने की धूप और पूनम की चाँदनी हर आयु वर्ग के लोगों पर अपना प्रभाव जमा के ही रखती है..... उत्तर भारतीयों को सर्दियों में सुबह सुबह सिर्फ तीन चीज पसन्द होती है.... पहली अदरक वाली गर्म चाय.....दूसरी चीज की किसी के दरवाजे पर जलता हुआ अलाव और तीसरी नरम नरम गर्म गर्म धूप की सिकाई....!

सुबह अदरक की चाय और अलाव के साथ जो महफिल सजती है वह फिर दस ग्यारह बजे के पहले जब तक करारी धूप न लग जाय तब तक चलती ही रहती है..!

बातों के बताशे जब एक बार वितरित होना चालू हुए तो फिर तब तक बटते रहते है जब तक आदमी छोड़ी न बोल दे....

गुफ़्तुगू की गोलियां जब एक ओर से बरसना चालू होती है तो खुलासे के धमाके पर ही जाकर खत्म होती है..!

और देखिये बाते भी इस तरह की जिसमे सब कुछ समाहित होता है..!

झगडू की बकरी ने सात बच्चे दिए पर झगडू बकरी के इस परफार्मेंस से निराश है.... उसे उम्मीद थी की कम से कम ग्यारह बच्चे तो होंगे ही...पर विधाता की मर्जी के आगे किसका जोर चला है... बकरी की तरफ देख के झगडू बोलता है... योर पिर फार मेंस इझ नोट गुड...आई बिल सेंड टू यू कसाई..!

नया नया जवान हुआ पुट्टी लाल जिससे पुरे गांव भर में कोई लड़की सेट न हो सकी वह जब सुरति मलते हुए बराक ओबामा और मिसेल ओबामा के बीच आंतरिक सम्बन्धों पर अपनी निजी राय रखता है.... तो दरवाजे के ओट से देख रही विमलिया भी एक बार शर्म से लाल होई जाती है और मन ही मन कहती है.... ई पुट्टी ललवा जो आज तक कभी गांव से बाहर नही गया उसको भी इतना गहन ज्ञान केसे है... मन के सन्तोष के लिये वह खुद को समझाती है हो न हो यह ज्ञान इसे जन्मजात मिला हो....!

सन्नी लियोनी जब मुंबई शिफ्ट हुई तो कोई उनको घर देने के लिये राजी नही था...कई महीने वह होटल में रही....यह बात जब जग्गू को पता चली तो वह भगा भगा गांव के एक मात्र सुचना केंद्र पोस्ट आफिस पहुँचा... पोस्ट मास्टर की मेज पर कमर में खोसे हुए नकद सौ रूपये निकाल के रखता है और मादक स्वर में कहता है...

डाक बाबू हमारे नाम से एक तार सन्नी जी को कर दो और कहो की हमारी पुरखों की हवेली पूरी खाली पड़ी है.... उसका हर एक कमरा उनके नाम कर दूंगा....बस वो यहाँ आकर रहने लगे....जगह की कमी नही है.... भले ही रोज गेहूं बेच के हमको जलेबी खिलानी पड़े पर कसम है चोराहे पर वाले पीपल के बाबा की जिस दिन सन्नी जी आई तो उस दिन पुरे गांव को पूड़ी नुक्ती का भोज दूंगा....!

कौन सन्नी की बात कर रहे हो....सन्नी देबल की सन्नी लियोनी की....डाक बाबू जग्गू की तरफ देख के बोले..!

हट्ट यार हम तो सन्नी लियोनी जी के बारे में बोल रहे है...!

जग्गू की आँखें रात में चमकते जुगनू की तरह चमक रही है...!

अबे जग्गू आइने में अपनी शक्ल देखि है..... तेरे से अच्छी तो सनी लियोनी की सैंडिल लगती है.... बात करते है.... सरऊ तुमको देख के तो नौटँकी में जनाना बना लौंडा भी भाव नही देता चले है सन्नी जी को घर में जगह देने के लिये.....!

जग्गू भी कम जहरीला नही है... ईट का जबाब पाथर से देना उसे आता है..!

हे डाक बाबू...याद है जब मट्टू मिसिर के लड़के की शादी में भवानी गंज से आर्केस्ट्रा आया रहा तो उसमे जो सबसे खब सूरत लड़की रही वो तुमको क्या बोली थी..!

क्या बोली थे बे...डाक बाबू उबल पड़े...!

अरे यही न कहा था की हरिद्वार जाने की उम्र हो गयी है और आर्केस्ट्रा के द्वार पे पड़े है..... खी खी खी.... अपना नही तो टेडी हो चुकी कमर का ख्याल करो...याद है की भूल गए....!

अबे ससुर वो कुछ न बोली थी....यह सब अफवाह है.... डाक बाबू मोके के मसले को मैनज करने में लगे थे....!

अफवाह नही है यह सच है.... आपके पीछे हमहूँ खड़े थे.....कमरिया करे लपालप गाने पर इक्कीस रुपया इनाम भी दिए थे.....हमसे न उड़ो हमको सब पता है...!

हे सुनो जग्गू भाई....यार किसी से इस बात की चर्चा न करना....और देखो यह सौ रुपये भी रख लो....हम तुम्हारा तार सन्नी जी तक अपने पैसे से भेज देंगे....!

पक्का भेज दोगे न...? नही कहो तो पुरे गांव में सबको तुम्हारा कांड बोल दे..?

अबे कर देंगे यार जब बोला है तो...अब तुम जाओ बहुत काम है....!

साजन पिक्चर जब रिलीज हुई तो उसने गांव घर के हर गली में एक संजय दत्त पैदा कर दिये...

पूछो कैसे....?

अरे हम बताते है केसे....उस समय हर नव जवान लौंडे की हेयर स्टाइल संजय दत्त की तरह हो गयी थी....अब चूँकि शरीर बनने में समय लगता है तो लौंडे लोग बाल ही बड़ा कर लिये.....एटलस की साइकिल पर बैठ उड़ती हुई जुल्फे जब तफरी काटती तो लौंडो को लगता की बस अब माधुरी दिक्सित मिल ही जायेगी....!

हमारे गुप्ता जी है न....अरे पड़ोसी गुप्ता जी...इनका बचपन भी गांव में ही बीता था....साजन पिक्चर देख के इनकी भी भाव बढ़ गए थे....इनके पिता जी शहर में रहते थे तो कोई कण्ट्रोल करने वाला था नही...इसलिये यह भाई साहब....बड़े बड़े बाल किये गांव घर में देखा है पहली बार साजन की आँखों में प्यार गाते हुए घूमते रहते थे....एक दिन सुबह सुबह जब यह गांव के बाहर वाले होटल पर खड़े लम्बी लम्बी फेंक रहे थे तो तांगे से इनके पिता जी उतरे...चूँकि गुप्ता जी के बाल बड़े बड़े थे और कमनीय कद काठी थी तो इनके पिता जी को लगा की कोई कन्या है... गुप्ता किधर मिलेगा यह पूछने के लिये जब उन्होंने आवाज दी तो गुप्ता ने पलट के देखा..!

गुप्ता की नजर पिता जी पर पड़ी भक्क से सौ वाट के बल्ब की तरफ फ्यूज हो गए....वही दूसरी ओर जब उनके पिता की नजर अपने इकलौते लड़के पर पड़ी जो अब बालों की लम्बाई से श्रीदेवी लगने लगा था...तो वह जल के हीटर हो गए...!

वही सड़क पर ही बाल पकड़ के जो घुसस्म लत्तम चालू किया तो सीधा नाई की दुकान पर ही जाकर रुके....नाई को बोल के पहले तो गुप्ता का मुंडन कराया और फिर घर तक लतियाते हुए लाये...!

फुल्लन पांडे और तन्नी ठाकुर की दोस्ती के कसमे पूरा गांव देता है..... पाचवी पास् करके जब दोनों ने गांव से पांच किलोमीटर दूर राजकीय विद्यालय में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन दोनों की नजर क्लास की सबसे खूबसूरत कन्या सुलोचना से टकरा गयी.....

सुलोचना ने जब हँस के फुल्लन को देखा तो पांडे जी सब श्लोक भूल गए.....गुरु जी ने कहा राम का रूप सुनाओ....पण्डे जी रहीम के दोहे सुना बैठे....!

तन्नी का भी यही हाल था.....सुलोचना ने जब एक बार तन्नी से पेन माँगा तो तन्नी ने जोश में आकर पूरा पेन का बॉक्स ही दे दिया.....दोनों कट्टर दोस्तों में तनाव रहने लगा...वजह सिर्फ सुलोचना ही थी...!

.दुरी कुछ और बढ़ती उससे पहले ही एक दिन सुलोचना ने कहा की तुम दोनों सिर्फ मेरे दोस्त हो.....उस रात फुल्लन और तन्नी सारी रात गले लग के रोये....बगल में बैठ टेप रिकार्डर पर अता उल्ला खा अपने गानों से सारी रात उनके जख्मो पे मलहम लगाते रहे.....!

मोहल्ले की महफ़िल उस वक्त तक खूब गुलजार रहा करती थी जब तक गाँवो की हवा में शहरी हवा का मिलाप न हुआ.....एक बार जब शहरी कल्चर गाँवो में इन हुआ तो लोग घर परिवार मोहल्ले से कटते चले गए....प्रेम की जगह स्वार्थ ने ले ली....सजीव रिश्तों की जगह टीवी सीरियल्स के रिश्तों ने ले ली....मिश्राइन् दादी जिन्हें एक समय में मोहल्ले के हर सुख दुःख का पता रहता था अब उन्हें सिर्फ ससुराल सिमर का और सन्ध्या बिदणी के बारे में पता है... मल्लू जादो जिनकी भैंस का दूध सारा गांव पीता था अब उनके यहाँ भी पाउडर वाले दूध की चाय बनती है.... लोगों के घर अब अमूमन पक्के हो गए है पर आपसी रिश्तों की बुनियाद कच्ची ही रह गयी है..... जरा जरा सी बात पर लोग बरसों के रिश्तों को लात मार देते है.... टैक्टर ट्रॉली पर बैठ कर गंगा स्नान का मजा लेने वाला गांव अब अपनी अपनी कार मोटर साइकिल में सिमट गया है....जरा सी तबियत खराब होने पर पूरा गांव देखने चला आता था..अब तो सिर्फ किसी के गुजर जाने पर ही खबर होती है...!

राजनैतिक हलकों में चर्चा होती है की देश गांव गलियारे भी अब स्मार्ट बनेगे.... मेरा दिल कहता है जरूर बने पर अपने मूल स्वभाव को न छोड़े तो बेहतर होगा जहाँ एक घर में बनती हुई पकौड़ी की प्लेट बिना कहे आजु बाजु के घरों में चली जाती रही है.... और उधर से भी कुछ न कुछ भर के ही आती थी...!

मोहल्ले की महफिल का यह नूरानी रंग कभी फीका न पड़े....रिश्तों की यह रंगोली कभी बेनूर न लगे...यही ख्वाइस है...!
 


तारीख: 09.02.2016                                    विशाल सिंह सूर्यवंशम









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