सर्द अन्धेरी रात और कड़कड़ाती सी ठंड ,चारो तरफ़ कोहरे कि चादर खिड़की पर खड़ी मैं दूर तक फ़ैले विराने को शून्य सी आँखों से तलाशती हूँ ,तभी बर्फ़ से ढके रास्ते पर मुझे एक परछाई सी नजर आती है मैं ठिठक कर खिड़की पर जमे कोहरे की परत को हटा उस परछाई को पहचानने की कोशिश करती हूँ । जानी पहचानी सी वही चाल दूर से सिर्फ़ आँखों कि चमक नजर आती है। मै एक दम सहम जाती हूँ ।
अतित कि कुछ यादें मेरे ज़हन मे ताजा हो जाती हैं
रुई कि तरह बर्फ़ का गिरना और तुम्हारा मेरे पास आकर अपने प्यार का इजहार बड़ी मासुमियत से करना मेरे सुर्ख हुए गालों को देख तुम्हारा वो शरारती अन्दाज मे मुस्कराना और मेरी हाँ का इन्तजार कितना रोमांचित कर गया था ।तुम्हारा इजहार करना ऐसा लगा मानों मै दुनिया कि सबसे खुबसुरत लड़कि हूँ ।वो तुम्हारे वादे,तुम्हारी मनुहार,हर पल मेरे साथ रहना एक आदत सी बन गए थे तुम कि एक पल तुम्हारे बिना रहना अच्छा नही लगता फिर एक दिन अचानक तुम्हारा वहां से चले जाना,दिन रात मै तुम्हारे आने का इन्तजार करने लगी एक आहट होती तो लगता तुम हो पर तुम तुम तो न जाने कहाँ खो गए थे ।
दिन,महीने,और साल ऐसे ही बितते चले गए और मै रोज तुम्हारे इन्तजार मे जीवन को पतझड़ कि तरह सींचती चली गई कि शायद कभी तो मेरे जीवन मे हरियाली आए पर हरियाली तो नही आई उसकि जगह मेरे बालों कि लटों को धीरे-धीरे सफ़ेदी कि चादर अपनी आगोश मे लेने लगी ।
चेहरे कि वो रौनक जिस पर तुम मरते थे उस पर झुर्रियों कि लकीरे आ गई ।
पर एक चीज आज भी बिल्कुल वैसी ही है ।जब भी तुम्हारे प्यार का इजहार याद आता है मेरा चेहरा आज भी सुर्ख लाल हो जाता है। अचानक मै उस अतित से बाहर निकलती हूँ दरवाजे पर एक दस्तक सी होती है कँपकँपाते कदमो से मै आगे बढ्ती हूँ इतनी रात गए कौन हो सकता है ।दरवाजा खोलती हूँ और तुम्हे सामने पा स्तब्ध रह जाती हूँ तुम जैसे कितने बूढे असाहाय से नजर आ रहे होते हो तुम भरी हुई नजरों से मेरी तरफ़ देखते हो जैसे कुछ कहना चाह रहे हों पर शब्द गले से बाहर नही आते और तुम लड़खड़ाते हुए जमी पर गिर जाते हो तुम्हारी आँखें शून्य सी मुझे निहारती है और तुम एक बार फिर मेरे जीवन को कभी न खत्म होने वाला पतझड़ दे जाते हो