फटी पतलून

भरी सभा थी, लोग बैठे हुए थे। भरी सभा से मतलब है आठ-दस लोग तो बैठे ही थे, गप्पें चल रही थीं। कोई करोड़ों की डील की बात कर रहा था, कोई शर्मा जी के बेटी की शादी में खाये हुए रसगुल्ले का मुंह में पानी भर-भर कर महिमा मण्डन कर रहा था, बाक़ी सब अपनी-अपनी हांकने के लिए बारी का इंतज़ार कर रहे थे, इसी में एक साहब अपने साले श्री के द्वारा ख़रीदी गयी ऑडी कार का बखान कर रहे थे, ये बात अलग बात है कि कमजोर पृष्ठभूमि से होने के कारण साले श्री ने इन महाशय का परित्याग चार साल पहले ही कर दिया था। 

अब परित्याग कर दिया तो कर दिया, मुहल्ले वालों की नज़र में साले श्री का नाम लेकर कॉलर चढ़ाने से कोई इन्हें रोक तो सकता नहीं था, आखिर साले तो इन्हीं के हैं। इनकी ऑडी की बात सुनकर सभा में मौजूद लोगों ने झूठी ही सही पर इनकी वाह-वाही में आश्चर्य व्यक्त किया। तभी सामने से गुल्लू साहब लम्बा कुर्ता, सफेद पतलून, कोल्हापुरी चप्पल पहने, मुंह में सुगन्धित पान चबाते हुए सभा में आ पहुंचे, गुल्लू साहब के आने से सभा में गर्माहट बढ़ गयी। तभी ऑडी वाले भाई साहब ने सिगरेट निकाली मुंह में लगाया और जैसे ही लाइटर जलाने वाले थे कि गुल्लू साहब ने, सार्वजनिक स्थान पर धुम्रपान न करने की सरकारी फरमान के बारे में बताते हुए ऑडी वाले भाई साहब की सिगरेट वापिस डब्बे में रखवा दिया। ऑडी वाले साहब को बुरा लगा....। तभी गुल्लू साहब ने पान की पीच लीलते हुए कहा 

‘‘भाई सुना है आपके साले श्री ने ऑडी खरीदी है।’’ 

इतना सुनकर ऑडी वाले साहब की कॉलर टन-टन करके उपर चढ़ गई, साहब ने शर्माने का स्वांग रचते हुए हां में मुण्डी हिलाया। सभा के बाक़ी सदस्य हैरत मे पड़े हुए थे कि आज गुल्लू साहब को हो क्या गया है, अपनी हांकने के बजाय किसी और की बड़ाई कर रहे हैं। गुल्लू साहब कुर्ते को उठाते हुए सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गये और बोले 

‘‘वो तेरी......भाइयों आज तो मिठाई लाना भूल गया, ख़ैर कल आप लोगों की मिठाई पक्की है।’’ सबने पूछा ‘भाई किस बात की मिठाई ?’ 

गुल्लू साहब ने चेहरे पर एक अजीब सा भाव लाते हुआ कहा 

‘‘अरे ज्यादा कुछ नहीं कल रत्नेश आया था न...... अरे भई अपना साला...... कह रहा था कुतुबमीनार की डील पक्की हो गयी, कल परसों में उसके नाम रजिस्ट्री हो जायेगी............... फिर हम जीजा-साले कुतुबमीनार पर चढ़कर सारी दिल्ली को देखा करेंगे।’’ 

इतना सुनते ही ऑडी वाले साहब की कॉलर टन से नीचे हो गयी। कॉलर को देखते ही सब ज़ोर का ठहाका लगाकर हंस पड़े। सामने बैठे नन्दन जी तने हुए गर्व की मुद्रा में अपने पोशाक को देख रहे थे, इतने में भाई की नज़र अपने ही पतलून पर पड़ी जो कि मियानी पर फटी हुयी थी। नज़र पड़ते ही भाई कुर्सी पर सिकुड़ गये। गुल्लू साहब के आने से थोड़ी देर पहले यही भाई साहब मन्त्रीमण्डल में मौजूद अपने रिस्तेदारों की लम्बी लाइन गिना रहे थे, फटी पतलून देखते ही भाई साहब के सारे मन्त्री रिस्तेदार फटे हुए पतलून के रास्ते से न जाने किधर चले गये। 

सभा में हंसी ठहाके निरन्तर चल रहे थे, पर नन्दन भाई के मन में एक अजीब सी उलझन उत्पन्न हो गयी थी, डर तो फिलहाल सभी की नज़र से था पर सबसे ज्यादा गुल्लू साहब से ही था। साहब किसी तरह अपनी इज्ज़त समेटे बिना समझे ही बेमन सबके साथ खिखिया रहे थे। इतने में चड्ढा साहब ने कहा 

‘‘भई गुल्लू साहब हंसी ठहाके तो जारी रहेंगे पर अभी एक-एक चाय होनी चाहिए।’’ 

गुल्लू साहब ‘‘हां-हां बिल्कुल हो जाये मैं तो सोच रहा था, एक गरमा गरम कॉफ़ी पिलाऊँ आप लोगों को, पर अभी याद आया आज मंगलवार है... और आप लोग तो जानते हैं कि मैं मंगलवार को पैसे खर्च नहीं करता।’’ 

तभी ऑडी वाले साहब ने इनकी खिचायीं करने के मकसद से कहा ‘आप तो बुध, वृहस्पति, शुक्र और शनि को भी नहीं करते।’ 

सब हंस पड़े नन्दन भाई ने भी झुठी मुस्कान बिखेर दी। वहीं नन्दन भाई के बगल वाले भाई साहब बोले ‘और गुल्लू साहब रवि और सोम को तो आप किसी से मिलते तक नहीं।’ 

गुल्लू साहब ने इन भाई की ओर तीखी नज़रों से देखा, जैसे ही गुल्लू साहब ने उधर देखा नन्दन भाई के ह्रदय में जैसे भूकम्प आ गया, मुंह लाल और माथा पसीने से भीग गया, नन्दन भाई ने सोचा अब तो मेरी इज्ज़त गयी। ख़ैर गुल्लू साहब की बुरी नज़र से नन्दन भाई की फटी हुयी इज्ज़त इस बार बच गयी, गुल्लू साहब ने बगल वाले साहब को जवाब दिया 

‘‘भई मैं किसी दिन पैसे खर्च नहीं करता, हर दिन को बराबर की नज़र से देखता हूं। किसी भी दिन को कम नहीं समझता, अब ये क्या बात हुई, ये दिन भगवान का है तो इस दिन न खर्च करूं बाक़ी दिन करूं, बाक़ी दिन भी तो किसी न किसी का होगा ! हयं रात होती तो जरूर करता। ’’ 

गुल्लू साहब को पल्ला झाड़ते देख लोगों ने नन्दन भाई की ओर देखा, जैसे ही लोगों ने देखा नन्दन भाई की जान मुंह को आ गयी, सोचने लगे इस बार तो पक्की बात है, गयी इज्ज़त..... नन्दन भाई को चाय मंगवाने में कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन पर्स निकालने के लिए उठें कैसे ? नन्दन भाई को अन्यमनस्क मुद्रा में देखकर ऑडी वाले साहब अपनी गिरी हुई कॉलर को फिर से उठाने की लालसा में चाय-खर्च वहन करने को तैयार हो गये। 

चाय ऑर्डर हुई, सभा के समस्त सदस्यों ने महसूस किया की नंदन भाई आज कुछ परेशान हैं। लोगों ने नन्दन भाई की परेशानी का कारण पूछा, भाई साहब ने कारण छुपाते हुए प्रश्न को इधर-उधर घुमा दिया। चाय आयी लोग पीने लगे, गुल्लू साहब ने आधी चाय ख़त्म करके चाय टेबल पर रख दिया और बोल पड़े 

‘‘क्या है ये........ न दूध, न चीनी अदरख़ का तो अता-पता ही नहीं......, मैं पिलाता तो पिलाता स्पेशल चाय, ख़ैर आ गयी है तो पीना तो पड़ेगा ही।’’ 

सुनकर कुछ लोगों ने मुँह बनाया, चाय तो पी रहे थे मगर इस सभा में नन्दन भाई अत्याधिक परेशान थे, कभी दाहिने लात को बायें पर चढ़ाते तो कभी बायें को दाहिने पर, कभी दोनो जांघे जोड़कर अपनी इज्ज़त बचाते, मन ही मन पत्नी को कोस रहे थे ‘कम्बख्त यही पतलून देना ज़रूरी था क्या’।” फिर खुद ही सोचते लेकिन हो सकता है कि ‘रास्ते में कहीं फट गयी हो’, मन में उथल-पुथल मची थी, बीच-बीच में दाँत दिखाकर माहौल से तालमेल बिठाने की कोशिश भी कर लेते। चाय ख़त्म हुयी, गुल्लू साहब ने जेब से एक बीरा पान निकालकर फिर खाया। 

इस सभा में बैठे लोग मध्यम वर्गीय या यूँ कहें निम्न मध्यम से उपर के वर्ग में थे फिर भी मै इन्हें मध्यम वर्गीय ही कहता हूँ। इन लोगों की जमा पूंजी सिर्फ इतनी थी कि स्पेलेन्डर या पल्सर या बहुत हुआ तो एक अल्टो कार खरीद सकते थे। पर इनके हौसले की दाद देनी चाहिए, ये अल्टो भी खरीदते तो उसे मर्सिडीज समझते थे और उसका प्रमोशन कल्पना मे ही सही परन्तु फिल्मस्टार अक्षय कुमार या सलमान ख़ान से ही करवाते थे। 

ये लोग सिर्फ गप्पे ही नहीं हांकते थे बल्कि व्यवहार भी मर्सिडीज वाले की तरह ही करते थे। किसी ग़रीब को तो दूर से ही सूंघ लेते थे और अपनी नाक तथाकथित दुर्गन्ध से बचाव के लिए दबा लेते थे। पान चुलबुलाते हुए गुल्लू साहब ने नन्दन भाई से कुछ पूछना चाहा, नन्दन भाई के उपर तो बिजली ही टूट पड़ी, नन्दन भाई की सांसे बाहर आने को बेताब हो गयी, मन नकारात्मक कल्पना के गहरे संसार सागर मे उतर गया, सोचने लगे 

‘मेरी फटी पतलून पर गुल्लू साहब आज ही निबन्ध लिखेंगे और चटखार लगाकर सबको सुनायेंगे भी, अब तो पक्का गयी मेरी इज्ज़त।’ 

नन्दन भाई को सबसे ज्यादा डर गुल्लू साहब से ही लगता था, अरे भई सभापति जो ठहरे, वैसे डर तो बाक़ी लोगों से भी था, लोग क्या सोचेंगे..... लोग कमजोर समझेंगे इत्यादि। नन्दन भाई की इस हालत को देखकर आज सब हैरान थे, सब कयास लगा रहे थे कि बात क्या है ?, गुल्लू साहब तो खोजी कुत्ते की तरह पीछे ही पड़ गये, कभी चेहरे पर देखते, कभी पांव पर कभी-कभी तो पूरे शरीर को स्कैन कर डालते, पर नन्दन भाई पूरे सुरक्षात्मक तरीके से पिच पर उतरे थे, सबूत नज़र ही नहीं आने देते। सभा के सरे सदस्य आपस में बातें करते जा रहे थे, लगातार गुल्लू साहब की खोजी निगाहें नन्दन भाई के ज़िस्म में कुछ तलाश रही थी, पर कुछ हाथ लग नहीं रहा था। 

तभी अचानक चड्ढा साहब बोल पड़े ‘‘भई हमने सोचा है हम इतने बुद्धिमान लोग है देश को हमारी ज़रूरत है, हमें एक राजनैतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना चाहिए, प्रधानमंत्री न सही मुख्यमंत्री की सीट तो पक्की है समझो।’’ 

सबने हांमी भरा गुल्लू साहब ने भी अपनी पैनी नज़र से चड्ढा साहब की बातों पर मोहर लगा दिया। फिर घूमकर अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान केन्द्रित करते हुए बोले ‘क्यूं नन्दन भाई ?’ 

इसबार देखते ही गुल्लू साहब चौंक गये, इनका ध्यान क्या हटा, इस बार स्थिति परिवर्तित हो चुकी थी, समझो सूरज पूरब की ओर से निकला तो था लेकिन पश्चिम की ओर न जाकर वापिस पूरब में ही जा रहा था। नज़ारा एकदम विपरीत हो चूका था। अब नन्दन भाई डरे हुए नहीं थे बल्कि तन कर बैठे थे, आत्मविश्वास से लबा-लव भर चुके थे। किसी सम्राट के भांति गर्व की मुद्रा धारण किये हुए थे। चाय की चुश्की लेते हुए साहब जो कुटिल मुस्कराये कि गुल्लू साहब का तो होश ही खराब हो गया। गुल्लू साहब नन्दन भाई के इस बदले मिजाज को देखकर हैरान हो गये, तभी अचानक उनकी नज़र नन्दन भाई की फटी हुयी पतलून पर पड़ी, गुल्लू साहब ने सोचा मिल गया और मौके का फ़ायदा उठाते हुए साहब ठहाके के साथ हंसते हुए बोले 

‘‘फटी पतलून !........ हा हा हा हा फटी पतलून ” ...... 

सब गुल्लू साहब की ओर देखकर ठहाके के साथ हंसने लगे....... गुल्लू साहब ने चीखते हुए कहा ‘बेवकूफों ! मेरी नहीं उसकी ’ , फ़िर नीचे अपनी पतलून की ओर देखा तो सट से बत्तीसी अन्दर हो गयी, चेहरा सुर्ख लाल हो गया, शर्म ने पसीने की शक्ल में पूरे कुर्ते को भिगो दिया, ह्रदय स्पन्दों ने मैराथन में हिस्सा ले लिया, मन हो रहा था ज़मीन फटे और साहब अभी धंस जायें। 

दरसल इत्तेफ़ाकन, नन्दन भाई से ज्यादा गुल्लू साहब की पतलून फटी हुई थी। यही देखकर नन्दन भाई के मन का डर काफूर हो गया था, सो भाई साहब तनकर बैठ गये थे कि जब राजा की ही पतलून फटी हो तो राजा मन्त्री की फटी पतलून पर हंस नहीं पायेगा। नन्दन भाई ने एक-बार ज़ोर का ठहाका लगाया और ऑडी वाले साहब ने तो हंसी के नये कीर्तिमान स्थापित कर दिये, सभा में ठहाका एक बार फिर गूँज पड़ा, गुल्लू साहब शर्म से लाल हो गये। सभा में उपस्थित समस्त व्यक्ति अपनी अपनी पतलून की तरफ देखने लगे। तभी इस कहानी ने हमें दो शिक्षा दे डाली, पहली- हम अपने अभाव से दुःखी नहीं होते बल्कि ‘‘लोग क्या सोचेंगे’’ इससे दुःखी होते है और दूसरी- दूसरों की फटी पतलून पर हंसने से पहले अपनी पतलून पर तो नज़र डाल लो भाई। 


तारीख: 10.06.2017                                    मनीष ओझा









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