बुढ़ापा

जाड़े के दिन। जनवरी का महीना। इस कड़कड़ाती सर्दी में कपड़ों के नाम पर फटे-चिथड़े पहने हुए एक वृद्ध नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर एल्मोनियम का कटोरा हाथ में थामे हुए गाना गाते हुए भीख मांग रहा था-
‘‘जवानी तेरा बोल बाला,  बुढ़ापे तेरा मुँह काला’’ जवानी तेरा----------
पेट की खातिर वह ‘‘वृद्ध’’ यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करने की लालसा पैसे की आशा में कभी-कभी अपनी जवानी को याद करते हुए इधर-उधर हाथ मटकाते हुए घूम भी जाता था। इस तरह के हाव भाव से वह यात्रियों का मनोरंजन भी कर रहा था। कुछ लोग चवन्नी अठन्नी कटोरे में डालकर चले जाते और कुछ लोग उसे अपने घेरे में लेकर खीसें निपोरते हुए मनोरंजन कर रहे थे। कुछ लोग उस वृद्ध की तरफ देखकर, मुस्कुरा कर कहते ‘‘देखो बुढ़ढे को बुढ़ापे में भी जवानी आ रही हैं? डिस्को-डांस कर रहा है सा-----’’। दूसरा कहता-‘‘क्यों रे! जब जवानी का इतना भूत तेरे ऊपर सवार हैं, तो कोई काम क्यों नहीं कर लेता? भीख मांगते शर्म नही आती तुझको?’’ बुढ़ढा मजबूरी में सबकी खरी-खोटी सुन लेता और मुस्करा देता। कौन जाने उस बेचारे पर क्या गुजरी है और किन मजबूरियों में आज वह भीख मांग कर अपने जीवन के अन्तिम बोझ को ढो रहा है।

बुढ़ढा सभी के इन तीखे प्रहारों को सहन करते हुए कटोरे की तरफ निगाह करके सोच रहा था कि तीन रुपये तो ऊपर वाले ने दे दिये हैं, दो रुपये की ऊपर वाला और कृपा कर दें तो दाल-चावल खाकर अपने वही पुराने फुटपाथ पर सोया जाए, जहाँ पर उसके और चिथड़े कपड़े पड़े हुए हैं। तभी दो पुलिस के सिपाहियों की तेज आवाज व गालियों ने उसका ध्यान तोड़ दिया-‘‘क्यों रे बुढ़ढे, तुझसे कल भी मना किया था कि इस स्टेशन पर दिखाई न पड़ना, भीख मांगना कानूनी अपराध है, फिर भी तू नहीं माना हरामजादे। चल अभी तुझे हवालात में बंद किये देता हूँ, जब हवालात की हवा खानी पड़ेगी, तो समझ में आ जायेगा कि भीख माँगना कानूनी अपराध ही नहीं, जुर्म भी है।
अरे भाई गालियाँ क्यों देते हो? कुछ उम्र का भी तो ख्याल करो। आप पुलिस वाले हो तो क्या हुआ, मेरा बेटा भी तो पुलिस अफसर हैं! बुढ़ढे ने यह सब एक सांस में कह दिया। ‘‘हा-हा-हा- पुलिस अफसर का बाप है! कहता है मेरी उम्र का ख्याल करो! जब उम्र का इतना ही ख्याल है तो भीख क्यों मांगता हैं? चल अभी पुलिस अफसर का बाप बनने का नशा उतार देते हैं तेरे ऊपर से! शराबी कहीं का, शराब पीते ही पुलिस अफसर का बाप समझने लगा अपने आपको! यह बड़बड़ाते हुए बुढ़ढे को धक्का मारते हुए ले आये कोतवाली में।
‘‘दीवान जी, साहब कहाँ हैं? यह बुढ़ढा बार-बार मना करने पर भी रेलवे स्टेशन पर भीख मांगता है। एस.एस.पी साहब के आदेश हैं कि शहर में  कोई भिखारी भीख मांगता हुआ न दिखाई पड़े, यह कहता है कि पुलिस अफसर का बाप हूूँ! ‘‘साहब तो घर जा चुके हैं। फिलहाल इसे हवालात में बंद कर दो। सुबह साहब के सामने पेश करेंगे । और हवलदार से कह दो कड़ी निगरानी रखें इसके ऊपर। कहीं निकलकर भाग न जाये बुढ़ढा बड़ा खूसट दिखाई पड़ता है।’’ रात भर बेचारा बुढ़ढा अपने बुढ़ापे को कोसता रहा, मारे भूख के नींद भी नही आई। जो कुछ पैसे भीख में मिले थे वह पुलिस वालों ने हड़प लिए, रात भर अपनी जवानी के सपनों में खोया रहा। क्या जमाना था, जो चाहता था, वह कर लेता था। जो मन में आता था, वह खाता था। जहाँ चाहता था, वहाँ सोता था। सब लोग इज्जत करते थे, सम्मान देते थे। बच्चे भी प्यार करते थे, क्या इज्जत थी जवानी में मेरी। बुढ़ापा तो नर्क हैं, आखिर बुढ़ापा आने से पहले ही व्यक्ति को भगवान उठा क्यों नहीं लेता? क्यों उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं? जवानी बुढ़ापे में कितना अंतर होता है-उतना अन्तर जितना कि जमीन और आसमान में होता है, स्वर्ग-नर्क में होता है! फिर वह वृद्ध यह सब सपने देखते-देखते फिर वहीं पंक्ति गाने लगा-‘‘जवानी तेरा बोलबाला बुढ़ापे तेरा मुंह काला’’ सिपाही की तेज आवाज ने पुनः बुढ़ढे के स्वप्न संसार को उजाड़ दिया। ‘‘क्यों रे! अभी भी होश में नहीं आया? रात भर हवालात में बंद रहा फिर भी जवानी याद आ रही है तेरे ऊपर! चल साहब के सामने, साहब आ गये हैं। ‘‘साहब यह वही बुढ़ढा है जो हम सबकी नाक में दम किये हुए है। बार-बार मना करने पर भी अपनी आदत से बाज नहीं आता हैं निगाह बचते ही आ जाता हैं स्टेशन पर भीख मांगने के लिए और भीख मांगकर कानून का उल्लंघन करता हैं। ‘‘पुलिस इंसपेक्टर श्री सिंह ने बड़े गौर से उस वयोवृद्ध की तरफ निहारा और अपने बीते दिनों की याद में खो गये और सोचने लगे कि अगर आज मेरे पिताजी जीवित होते तो उनकी लगभग यही उम्र होती, तब मैं उनकी खूब सेवा करता, खूब इज्जत करता उनकी, मान मर्यादा का पूरा ख्याल रखता, लेकिन मेरे भाग्य में पिता का प्यार था ही कहाँ! मुझे तो वह तीन वर्ष की आयु में ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गये और जवान होते-होते माँ भी स्वर्ग सिधार गई। बड़े ही किस्मत वाले होते हैं वह लोग जिनके माँ-बाप का साया उनके ऊपर होता हैं। सोचते-सोचते इंसपेक्टर सिंह की आंखे गीली हो गईं। रुमाल से आँसू पोंछते हुए वह उस बुढ़ढे से बोले, क्या नाम है अंकल आपका? आप कहाँ के रहने वाले हैं? आप जानते नहीं कि भीख मांगना एक कानूनी अपराध है और एस.एस.पी साहब के सख्त आदेश हैं कि शहर में कोई भी व्यक्ति भीख मांगता न दिखाई पड़े फिर भी आप भीख क्यों माँगते  हैं? यह इंस्पेक्टर सिंह एक ही सांस में कह गये।

इन सम्मानित शब्दों को सुनकर वृद्ध के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। एक पुलिस इंसपेक्टर इस सभ्यता की भाषा में सामने कुर्सी पर बैठाकर इज्जत से बात कर रहा हैं। यह देखकर वृद्ध का हृदय गद्-गद् हो गया और अनायास ही उसके मुंह से निकल गया ‘‘क्या बताऊँ बेटा! ओह! गलती हो गयी साहब, मैं आपसे बेटा कह गया, मुझे माफ कर दीजिये। मेरा कोई बेटा इस संसार में नहीं है, मेरा अपना कोई नहीं हैं। सब स्वार्थी हैं, सब मतलबी हैं, दुनियाँ स्वार्थमय है इंसपेक्टर साहब ! और आपका कानून भी भीख मांगने की अनुमति नहीं देता हैं। यह कहकर बुढ़ढा फफक-फफक कर रो पड़ा। ‘‘नहीं नही अंकल, आप बिल्कुल मत घबराइये, आप मेरे पिताजी के समान हैं। आपने बेटा कहकर कोई गलत काम नही किया, बल्कि आपका बेटा कहना ही मेरे लिए सौभाग्य की बात है। अब आप अपने बारे में बताइये, जो मैने आपसे पूछा हैं। क्या बताऊँ बेटा जब तुम इतने प्यार और सम्मान से पूंछ ही रहे हो तो बताये देता हूँ। वरना इस दुनियाँ का खून सफेद हो चुका है कुछ भी बताने से फायदा नही हैं। मेरा नाम राम भरोसे है, मथुरा का रहने वाला हूँ। चालीस वर्ष पहले मैं भी तुम्हारी तरह जवान था, मेहनत और खून पसीने की कमाई से अपना व अपने बीबी बच्चों का पेट पालता था। दो बेटे व पत्नी का छोटा सा परिवार था मेरा। दिन भर व रात भर उसी धुन में लगा रहता कि यह दोनो बेटे पढ़ेंगे, लिखेंगे, बड़े होकर मेरा सभी दुख-दर्द दूर कर देंगे। ऐसा सोचकर मैं अपना सब कुछ न्योछावार कर दोनो बेटों को पढ़ाने-लिखाने में जुट गया। सोचा था कि जब यह बड़े अफसर बन जायेंगे तब क्या कमी रहेगी मेरे लिए! भरी जवानी में आराम न सही तो बुढ़ापे में तो आराम मिलेगा ही! बस इसी आशा में अपने शरीर की हड्डियों को पीसता रहा, खून पसीना बहाता रहा, बड़ी-बड़ी मुसीबते  आई, जिनका बहादुरी से सामना किया। कई-कई दिन भूखों रहना पड़ा, किन्तु बच्चों को पता न चलने दिया कि किन हालातों में उनको पाल पोस रहा हूँ। खुद नही खाया किन्तु बेटों को खिलाया। खुद कपड़े नही पहने लेकिन बेटों को कपड़े पहनाये। दिन रात मेहनत करके बच्चों को पढ़ाया, दोनो बेटे बड़े हुए, भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली, मेरा बड़ा बेटा पुलिस अधिकारी हो गया। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मन ही मन भगवान का आभार व्यक्त किया कि हे ईश्वर, तूने मेरे परिश्रम को सफल कर दिया। इसी बीच मेरी पत्नी भी मेरा साथ छोड़ गई, बस इसी में मेरा शरीर आधा रह गया। अब उतनी मेहनत नहीं कर पाया, कुछ बुढ़ापे के हाथ भी मेरी ओर बढ़ रहे थे। छोटा बेटा अधिक न पढ़ सका, लेकिन वह भी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हो गया। दोनों की शादियाँ हो गईं, दोनो बेटों ने अपने-अपने घर बसा लिए।
मैने भी संतोष की सांस ली कि अब मेरी जिम्मेदारी समाप्त हो गई, अब आराम करुँगा। लेकिन किस्मत में आराम कहाँ! कुछ दिन बड़े लड़के पास रहा, तो वह ठहरा पुलिस अफसर, जो भी उससे मिलने वाले आते तो वह मेरा परिचय देता कि यह मेरे गाँव में बेचारे अकेले रहते थे, इसलिए मैं इनको यहाँ ले आया। अब यह मेरे ही पास रहते हैं। मैं यह सुन-सुन कर तंग आ गया था और मेरा दम घुटने लगा था। अब मैं उसके घर में एक मिनट भी रुकना नहीं चाह रहा था। सो, परेशान होकर छोटे बेटे के पास आ गया। वहाँ आते ही छोटी बहू के उलाहने सुनने को मिले ‘‘बड़ा बेटा बड़े लाड़ प्यार से पाला था, बड़ी मेहनत से पढ़ाया था उसे, सारी कमाई उसी की पढ़ाई पर खर्च कर दी और इनसे कहा कि बेटा मैं अब बूढ़ा हो गया हूँ अब तुम नौकरी कर लो। केवल दसवीं क्लास तक बड़ी मुश्किल से पढ़ाया था इन्हें! अब क्यों नही रहते अपने उस लाडले बेटे के पास! 

यह सब मुझे सुबह-शाम दोनों वक्त समय से सुनने को मिलते थे। मेरी थाली में पहले कटु शब्द परोसे जाते थे, बाद में बचा-खुचा खाना थाली में ऊपर से डाल दिया जाता था। बस बेटा! यह अपमान का घूँट मैं ज्यादा दिन पी न सका, सो बिन बताये घर से निकल पड़ा। जिधर पैर ले गये, चलता गया। भूख लगी तो माँग कर खा लिया, नींद आई सो फुटपाथ पर सो गया। अब बुढ़ापा है बेटा! संसार में जीवित रहना है तो जिन्दा रहने के लिये खाना तो खाना ही है। बस इसलिये भीख मांगता हूँ इंसपेक्टर साहब। कल रात से खाना भी नसीब नहीं हुआ, कह दो अपने कानून से वह मुझे बंद कर दें किसी जेल में। ऐसा कह कर वह बुढ़ढा फफक-फफक कर रोने लगा।
यह करुण कहानी सुनकर इंसपेक्टर सिंह की आंखों में पुनः आंसू बहने लगे। उठकर बोले ‘‘आज से आप मेरे पिता समान हैं, अब आप सदैव मेरे साथ ही रहेंगे। आज से आप मांग कर नहीं बल्कि दूसरे ऐसे बेसहारा लोगों को खाना खिलाकर ही खुद खाना खायेंगे। यह सुनकर उस वृद्ध का गला रुंध गया और रुंधे हुए गले से बोला-‘‘बेटे! अगर तुम जैसे सपूत बेटे इस समाज में सभी हो जायें तो भिखारी और मुझ जैसे असहाय लोग देखने को ही नही मिलेंगे। फिर किसी पुलिस वाले को किसी भिखारी को हवालात में बंद नहीं करना पड़ेगा। यह बुढ़ापा एक अभिशाप न बनकर वरदान बन जायेगा। मेरे बेटे! आज के वर्तमान युग में तुम जैसे सपूत बेटों की ही आवश्यकता हैं। धन्य हैं तेरे माता-पिता, जिन्होंने तुम जैसे सपूत को जन्म दिया है। ऐसा कहकर इन्स्पेक्टर व वृद्ध दोनो गले मिलकर रोने लगे। यह दृश्य देखकर अन्य पुलिस वालों की आँखे डबडबा आईं।


तारीख: 03.11.2017                                    पंडित हरि ओम शर्मा हरि 









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