घोर निशा, श्रीहीन अमावस, चंदा ढूंढत चंद्रकला
एकांत वास में विचलित सांसें, तुझ बिन प्रियतम
नम पलकों में बिखरा बिखरा सा, मौन अकिंचन
हो मृग देह पर, सिंह जिव्हा का चूभता आलिंगन
धरा राह निहारे,अन्तर्मन तङपे, है जलधर खोया
खोया सा ये जग लागे, लागे खोया घायल सावन
ज्यूँ चमक चमक कर, अंतस चूभती रवि रश्मियां
है सूर्यकेंद्र अपेक्षित, निर्जनता-सम अंधकार तम
नीर से बिछङन-दर्द गिरी का, दरिया पीर संभाले
तब ही तो है अंतिम परिणति, जल का होना नम
तूझ बिन साजन, यूँ भंवर में उलझी जीवन नौका
जलमध्ये ज्यूं पद्म प्यासा, लेकर के संग में शबनम