आज देश की संसद देखो घिरी हुई हे चोरो से
बिन वर्षा के मेंढक और कागज के झूठे मोरो से //
बुलेटप्रूफ गाड़ी में बैठकर ये संसद जाते हैं
देशके प्रहरी सीमा पर बिन रोटी के मर जाते हैं //
इनको आदत पड़ी हुई है, ऐसी में सोजाने की
तैलफूलेल लगाकर के सावेर में रोज नहाने की //
डिस्को मैं जाकर के यारों शाम में मौज उड़ाते हैं
गरीबो के हाथों से रोटी छीन के, खुद बिरयानी खातें हैं //
सफेदपोश नेता बनकर ये सीधा रूप दिखते हैं
ये तो इतने जहरी हैं की नागों को खाजाते हैं //
पांच वर्ष के लिए आते हैं, केवल नोट कमाने को
गरीव और पिछडो के ऊपर केवल वोट बनाने को //
एकबार इनसे पूंछो आज़ादी कैसे आयी है
याद करो उन वीरो की जिन्होंने अपनी जान गवाई है //
वीर सावरकर, तात्या टोपे ने अपनी जान लगाई थी
राणा प्रताप ने जंगल में जा घास की रोटी खाई थी //
एक घंटे भी आज तुम धूप मैं खड़े नहीं हो पाओगे
ऐसा मौका मिला अगर तो सोलह चक्कर खोयोगे //
आज तुम्हे तो होड़ लगी है अपने महल बनाने की
जनता के पैसे को देखो लुटलूट कर खाने की //
वीर क्रांतिकारियों की तुमको याद न बिलकुल आती है
आज केवल है पद और पैसा, झूठे पोते नाती हैं //
कुछ याद करो उन लोगो को जिनने अपने लहू बहाया था
दिनरात मेहनत करके तुम्हे कुर्सी तक पहुँचाया था