दलमा के पास खड़ी बस से
निकलकर सैलानी सब तैयार हुए
हाथ में रस्सी , पहने आँखों में चश्मा
जूता , टोपी के साथ करने चले करिश्मा ||
ध्येय था पहुंचे छोटी पर
रास्ता भरा घनघोर जंगल
चल पड़े मार्ग में करते निशान
थोड़े ही देर में होने लगा थकान ||
ऊपर या तो पेड़ या दिखा आकाश
नीचे दूर - दूर तक समतल का नहीं आस
बीच ढलान पर पहुंचा टोली
सुन रहा था हिरन की बोली ||
रुक कर जब पकड़ा था टहनी
कुछ आया हाथ कि साँसे सहमी
वो था रबड़ जैसा फटा ट्यूब
एक साँप ने बदला होगा यहाँ केंचुल ||
कहाँ था अभी मुसीबत टला
नहीं पता, बाघ, चीता या तेंदुआ
पास की झाड़ियों में टहलते - टहलते
हमें भाँप गया अपनी पैनी नज़र से ||
किसी तरह जब डर पर हुआ काबू
तो दिखा डरावना भालू
सुन-सुनकर हाथियों की चिंघार
सारी होशियारी हुई बेकार ||
छुपते भागते किसी तरह जान बची
हाथियों की टोली जब अपने राह बढ़ी फिर जब हुआ शुरू चढ़ना बेधड़क
कि झेलना पड़ा बंदरों का उपद्रव ||
जब पूरी हुई थी चढ़ाई
दे रहे थे एक दूसरे को बंधाई
ऊपर पहुंच मिला शहर का अद्भुत दृश्य
सारा भय हो चुका था बिल्कुल अदृश्य ||