दलमा पर पर्वतारोहण 

दलमा के पास खड़ी बस से 
निकलकर सैलानी सब तैयार हुए 
हाथ में रस्सी , पहने आँखों में चश्मा 
जूता , टोपी के साथ करने चले करिश्मा ||
 
ध्येय था पहुंचे छोटी पर 
रास्ता भरा घनघोर जंगल 
चल पड़े मार्ग में करते निशान 
थोड़े ही देर में होने लगा थकान  ||

ऊपर या तो पेड़ या दिखा आकाश
नीचे दूर - दूर तक समतल का नहीं आस
बीच ढलान पर पहुंचा टोली 
सुन रहा था हिरन की बोली ||

रुक कर जब पकड़ा था टहनी
कुछ आया हाथ कि साँसे सहमी
वो था रबड़ जैसा फटा  ट्यूब
एक साँप ने बदला होगा यहाँ केंचुल ||

कहाँ था अभी मुसीबत टला
नहीं पता, बाघ, चीता या तेंदुआ  
पास की झाड़ियों में टहलते -  टहलते  
हमें भाँप गया अपनी पैनी नज़र से || 


किसी तरह जब डर पर हुआ काबू
तो दिखा  डरावना भालू  
सुन-सुनकर हाथियों की  चिंघार 
सारी होशियारी हुई बेकार ||

छुपते भागते किसी तरह जान बची 
हाथियों की टोली जब अपने राह बढ़ी फिर जब हुआ शुरू चढ़ना बेधड़क
कि झेलना पड़ा बंदरों का उपद्रव ||

जब पूरी हुई थी चढ़ाई 
दे रहे थे एक दूसरे को बंधाई
ऊपर पहुंच मिला शहर का अद्भुत दृश्य
सारा भय हो चुका था बिल्कुल अदृश्य ||


 


तारीख: 20.03.2018                                    ज्योति सुनीत









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