एक पिता की बेचैन ख़ामोशी

अपनों को मुझसे

अब कोई सरोकार नहीं

अपनों पर मेरा

अब कोई अधिकार नहीं

अपनों से हुआ

कोई सपना साकार नहीं

गहरे जख्म

दिए मेरे अपनों ने

सुनहरे पंख

दिए मेरे सपनों ने

उदास आंसू

दिए मेरे नयनों ने

मेरे सवालों का

मिलता कोई जवाब नहीं

उनके लिए

अब मेरा कोई ख्वाब नहीं

मैं अब इक काँटा

कोई खिलता गुलाब नहीं

मेरे लिए कोई

वक्त नहीं उनके पास

फिर क्यों करूँ

मैं उनसे कोई आस

आंसू टपक जाते

जब दिल होता उदास

मतलब निकल गया तो अपने भी

अपनी राह निकल जाते हैं

अपने ही बनाये हुए रिश्ते भी कभी

हाथों से फिसल जाते हैं


तारीख: 16.09.2019                                    किशन नेगी एकांत









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