फैसला तुमपे छोड़ता हुँ

जाओ तुम्हे इश्क़ के पिंजरे से आजाद करता हुँ।
अपनी ओर से सारी बन्दिशें तोड़ता हुँ।
इश्क के अंजाम का फ़ैसला तुमपे छोड़ता हुँ।
बताओ की शरीक़ ए इश्क़ होना चाहती हो
या किसी और कि होना है तुम्हें
ये फैसला भी मैं तुमपे छोड़ता हुँ।

कई लोग कहते है, की एक नज़र में इश्क़ नही होता।
इस सच झूठ का फैसला भी मैं तुमपे छोड़ता हुँ।
हमे मोहब्बत की सज़ा देनी है या वफ़ा का तोहफा।
ये फैसला भी मैं तुमपे छोड़ता हुँ।
और फैसला जो भी करना 
उसमे तुम्हारा भी ख्याल हो 
ये फैसला भी मैं तुमपे छोड़ता हुँ।


तारीख: 20.10.2017                                    विनोद महतो









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