गरीब का हाथ

 

हे हाथ! तुम कितने महान हो
मुझ गरीब के कृपा निधान हो
हस्त! तुम वरद हस्त हो।


हाथ! मैं तो करूँ तुम्हारी ही जय-जयकार
तुम्हें ही करूँ मालार्पण
तुम ही तो हो सहारा मेरे
इस अंधे की लकड़ी तुम ही तो हो
तुम्हारे होने ही से तो कर लेता हूँ मैं मेहनत।


धन्य है हस्त तुम्हें
जो तुमने बनाये रखा अपना हाथ
मुझ निर्धन, गरीब पर।
धन्यवाद तुम्हें, प्रणाम तुम्हें।
 


तारीख: 18.08.2017                                    अमर परमार









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है