ये सच है कि उसका बलात्कार हुआ,
एक बार नहीं कई बार हुआ.
चार दीवारी के अन्दर, सारे रिश्तों के बीच,
अपना ही घर बाज़ार हुआ.
हाँ सच है कि उसका बलात्कार हुआ,
एक बार नहीं कई बार हुआ.
मेहंदी भी लगी, चूड़ी भी सजी,
वो दुल्हन भी बनी और दासी भी.
रिश्ते बदले हालात वही,
पर इसमें नयी कोई बात नहीं.
अपना घर पाने का सपना, एक बार फ़िट बेकार हुआ.
हाँ सच ही तो है कि उसका बलात्कार हुआ,
एक बार नहीं कई बार हुआ.
अब बहुत हुयी ख़ामोशी सब कुछ कहना उसको आता है,
कोई साथ चला तो ठीक नहीं तो चलना उसको आता है.
वो घर से क्या निकली जैसे कोई लक्ष्मण रेखा लांघी है.
हर नुक्कड़ पे चौराहे पे. हर गली में अपने भी घर में,
फिर रोज़ वो अत्याचार हुआ.
ये सच है कि उसका बलात्कार हुआ,
एक बार नहीं, बार बार हुआ...