इन होंठों पे हँसी रहती

इन होंठों पे हँसी रहती,
मोहब्बत दिल में जो होती,
ये घर विरां नहीं होते,
जो यूँ न नफरतें पलती,

सितमगर शौख़ से बैठा,
इसे भड़का, उसे भड़का,
शहर बर्बाद ना होता,
सियासत जो नहीं होती,

सुलगता सा मकां देखो,
ये ख़ूनी आशमां देखो,
ये मंजर खुशनुमा होते,
जो गैरत पी नहीं होती,

बड़े नाज़ों से पाला था,
वो दादी का दुलारा था,
पडा बेसुध सा ना होता,
जो जिंदा इंसानियत होती,


तारीख: 05.06.2017                                    विजय यादव









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