जिन्दगी

तलाश रही हूँ खुद को जो मैं हूँ 
खुद ही अपनी तलाश में लोगों को
मैंने जिन्दगी भर भटकते देखा ।

जिन्दगी के एक लम्हे को
सिर्फ अपने लिए जीने की चाह में 
मैंने जिन्दगी को सिमटते देखा ।

बीतती जाये जिन्दगी ये ऐसे
 सरकती है हाथों के बीच रेत जैसे 
मैंने जिन्दगी को एहसास तीखे मिलते देखा ।

दुनिया में मिले ये तमाम रिश्ते 
पल-पल में हैं बनते- बिखरते
मैंने जिन्दगी में दर्द भरते ही रिश्तों को देखा ।

जिन्दगी को दिखे ये जो रंग तमाम 
अब और चाहें क्या देखने को
मैंने जिन्दगी को वक्त के संग बदलते देखा ।


तारीख: 18.07.2017                                    गीता तिवारी









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