क्यों जन्म ले वो मासूम

      ये कैसा विराना है 
         जिसे महसूस कर 
कंपकपाया है तन मन उसका 
              भविष्य में
          सूखा कांटे सोच 
        मृत्यु की तमन्ना लिए 
        उखड़ा-उखड़ा आज 
          हर पल है उसका 
    जलायेंगे मुझे भी दहेज लोभी 
जलाया है जैसे धरती माँ का दामन 
    शर्म से झुकी है पलके उसकी 
            रूठ गयी आरजू 
अब कहां जन्म लेने का मन है उसका ।

 

            कहती साहसकर 
             उसकी धड़कन 
           चढ़ाया जैसे तुमने 
          कितनो को सूली पे 
     मासूमो को बोझ समझकर 
अपने वंशवाद के तले मुंह छुपाकर 
           भाईयो में घृणा 
          पिता बना अज्ञानी 
भाई के शब्द लगे बहना को पहेली 
           माँ रह गई अकेली 
          बन बैठी कठपुतली 
               उस पर आई 
            बुढ़ापे की तलवार 
किया जिसने भविष्य पर अपने वार 
             क्यों जन्म ले वो 
                ये सोचे वो
          क्या वजूद इंसा तेरा 
             क्या वजूद मेरा 
     जब भविष्य ही हरा भरा नही 
क्या हक है फिर जन्म लेने का उसका 


                 नही उसे 
       वो मंजर देखने की चाह 
          जिसमे बरसे शोले 
            नफरत के गोले 
      फूल बहारो का मर्दन कर 
             विकास की राह 
           दिल दहलाती भूख 
    होंठ सुखाती अश्रुओ की प्यास 
              स्त्रियों के प्रति 
सहानुभूति दर्शाती लालच की आस 
     फिर क्यों जन्म ले वो मासूम 
                जब होना है 
      एक दिन विनाश धरती का 
  धरती माँ के गर्भद्वार को तोड़कर 
           जीवन की परतो का 
     फिर क्यों ले वो जन्म मासूम 
जब होना है एक दिन विनाश धरती का


तारीख: 12.08.2017                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है