जब तुमने मेरे हाथो को छोड़ा था,
क्या इन लकीरों को भी मरोड़ा था?
कुछ तो छूटा है मेरा तेरे पास,
क्या तुम ले गयी हो अपने साथ
अब दिन रात देखता हूँ इस हाथ को,
क्या कुछ छोड़ा है, तुमने मेरे साथ को
खोल रहा हूँ मुट्ठी मैं अब ये
एक कांच का टुकड़ा,
जो तुमने रख छोड़ा था
टूटकर शायद तब वो,
नयी लकीरें खींच बैठा था।