तेरी कोख से जन्मा ,
मैं दुनिया के लिए एक शिशु था....
पर तरे लिए , तेरी पूरी दुनिया...
मैं अपनी अधखुली छोटी सी आँखों से तुझे देखते ही ,
कुछ इठलाकर , होंठ पिचकाकर रोता था....
और तू अपने कोमल हाँथों से....,
मेरी आँखों को मूँदते...
ललाट को चूमते...
और छोटे केशों को सहलाते , कहीं खो सी जाती थी....
तू कहाँ खो जाती थी माँ......?
क्या तू मन ही मन मेरे भविष्य के सपने बुनती थी....?
क्या हैं वो सपने माँ...? मुझे भी बता....,
मेरा तन घिस जाएगा, मगर मैं तेरा मोती सा मन बेमोल न होने दूँगा....,
हर उस बाधा से लड़ूंगा जो तेरे सपनों के आड़े आएगी....,
पर तू बताती नहीं है माँ....!!
अपने उन सपनों को अपने अंदर समेट लेती है...,,
और बस इतना कहे देती है , "तेरे सपने ही मेरे सपने हैं..."
मैं जानता हूं , तू झूठ कह रही है...!
तू नहीं बताएगी.....,,
आखिर तू एक माँ जो है...,
हर ममता की मूरत की भांति ,
तू भी अपनी संतान में अपनी खुशी तलाशती है.... ,
है ना माँ..?
सही कह रहा हूँ न...?
पर तेरी खुशी मेरे लिए सर्वोपरी है ,
मैं अपना हर एक सपना पूरा करूंगा ,
ताकि तू ,
मेरे लिए देखे अपने हर एक सपने को पूरा कर सके..।।