मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ

आधी सी उम्र अपनी झोंक दी है
महिला उत्थान में मैंने
सभाओं में जाता हूँ
विचार-विमर्श करता हूँ, समाज में, समाज के लोगों से


कि क्या अहमियत है नारी की
समाज में, धरती पर
कि क्यों ज़रूरी है
एक बिटिया, परिवार में


बोलता हूँ, मंचों से नारी के बारे में
माइक लगाकर भी चीखता हूँ
कि कहीं तो समझ आएगी लोगों को
जो करवाते हैं लिंग जाँच


फिर करवाते हैं गर्भपात
जाता हूँ बैठकों में महिला मण्डल की भी
समझता हूँ परेशानियाँ एवं समस्याएँ
जगत-जननियों की


फिर मिलकर कोशिश करता हूँ
इनका समाधान ढूँढने की
दिल से चाह है मेरी कि सम्मान मिले हर नारी को
न पाये वो कभी अपेक्षित स्वयं को


मेरी स्वयं भी तो तीन बेटियाँ हैं
हाँ! चार लड़कियाँ
बहुत होती हैं चार लड़कियाँ
लगता है कितना बोझ सा है मुझ पर
इनकी शादी वग़ैरह का


कितने सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं
काश! कि मेरा एक लड़का होता
मेरा वारिस होता।
 


तारीख: 18.08.2017                                    अमर परमार









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