मैं जानता हूँ मेरी मृत्यु को

मैं जानता हूँ कि मृत्यु मेरे निकट है
मेरी मृत्यु समीप है
पर क्या करूँ
अक्सर भूल जाता हूँ कि
मृत्यु मेरे निकट है


याद नहीं रहने देता मेरा जन्मदिन
जिसे मैं हर दिन मानता हूँ
अपने प्रियों के साथ
जो ज़िंदगी मिली है मुझे
वो भुला देती है कि
मृत्यु मेरे निकट है


क्योंकि मेरे सब प्रिय अब भी मेरे साथ हैं
कभी-कभी जब आ जाता है यमदूत कोई
तो मेरे प्रिय उसे अपनी बातों में लगा लेते हैं
हर बार उसे चकमा दे जाते हैं


एक और रात आया था यमदूत दबे पाँव
पर घुस ही नहीं पाया उस चक्रव्यूह में
जो मेरे अपनों ने बना कर रखा था
एक बार मैं अकेला जा रहा था बाहर
तो यम ने बारिश कर दी मौत की बूंदों की


पर दुर्भाग्य यम का कि
उस वक्त था मेरे पास एक छाता
जो बना था दुआओं से
अब तो थक चुका है, निराश हो चुका है यमदूत
इतने प्रयास, सारे विफल कहकर चला गया यमदूत


मैं जानता था कि मृत्यु मेरे निकट है
पर मैं नहीं चाहता था कि मरूँ अभी
शायाद इसलिए भी मौत मेरा वरण न कर सकी
हाँ! जब भी इच्छा होगी, ज़रूरत होगी
बुला लूँगा उसे
और फिर उसे विफल नहीं होने दूंगा।
 


तारीख: 18.08.2017                                    अमर परमार









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