वेदना ! मन छोड़ दे
भेदना ह्रदय मेरे
न शस्त्र तेरा चल सके
देह धातु की मेरी.
ना बहूँ मैं धूल में
ना मलूँ मैं धूप में
पार कर वो आइ हूँ
जो डटे न शूल मैं.
भर घाव भी जाये मुझे
न आस ना ही चाह है
दम लगा तू रोक ले
मेरी यही तो राह है.
घबरा गया समय क्या तू
देख मेरी चाल को
न रात पाएगी सुला
इस सूर्य के कपाल को.
अवगत कराऊं मैं तुझे
निश्चय अटल मेरे हुए
न सूर्य डूबे अब कभी
सपने बेकल मेरे हुए.