ना अंदर चैन ना बाहर चैन  

पूस की सर्द ठिठुरती रैन
दर्द बढ़ाते दुनिया के बैन
बस दवा हैं वो कजरारे नैन
ना अंदर चैन ना बाहर चैन।।

वो ख़्वाब में हैं आंखों में नहीं
खुशबू उसकी साँसों में नहीं
ढूंढा उसको मैंने खुद में
मेरे मन में है हाथों में नहीं
गाता है दिल यही दिन रैन
ना अंदर चैन ना बाहर चैन।।

री कौन है तू चेहरा तो दिखा
इस चांद से ये परदा तो हटा
इस जहां में तू बस मेरी है
इस ज़ालिम दुनिया को तू बता
बाईस बसंत तो काट लिए
डसते अब 'शंकर' को दिन रैन
ना अंदर चैन ना बाहर चैन।।

                               


तारीख: 20.03.2018                                    निशांत मिश्रा शंकर









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