नन्दलाल तुम आना मत अब,
आना भी माखन न चुराना अब।
था जमाना जो बांसुरी खींच लेती थी उस जमाने को,
शक होता है दुनिया को बंसी मत बजाना अब।
साजिश है ज़माने की यहाँ हर घूंट में,
किसी को सुदामा मत बनाना अब।
मायने बदल गये हैं शब्दों के अब यहाँ,
राधा से था प्रेम न किसी को बताना अब।
नन्दलाल तुम आना मत अब...
यह मोहक बन्शी न बजाना अब।