निर्भया अवतारिणी

मैं हूँ माँ, जग की महिमा भी,
नारी का सुंदर अवतार..
पर कुछ निर्मम हाथों ने
कर डाले कैसे अत्याचार
मुझे निर्भया मुझे दामिनी
बना कैसे ललकारा है
ए समाज के कुंठित राक्षसों
आया अंत तुम्हारा है...

निकल पड़ी हूँ आज क्रांतिमय
सुनकर अस्मिता भंग पुकार
लांघ जाऊँगी आज उन्हें भी
इस युग शिव मानेंगे हार ....
 


तारीख: 20.10.2017                                    समीम मोसमी









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